भारत में स्टॉक मार्केट की ओर युवाओं का रुझान बीते कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है, लेकिन यह “निवेश” नहीं, बल्कि “सट्टेबाजी” का रूप ले चुका है। सेबी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 3 सालों में 90% फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) ट्रेडर्स और 80% इंट्राडे ट्रेडर्स को भारी नुकसान हुआ है, जिसका कुल आंकड़ा 1.8 लाख करोड़ रुपये से अधिक है । इसके पीछे क्या कारण हैं, और क्यों युवा इस जाल में फंसते जा रहे हैं? आइए विस्तार से समझते हैं।
1. फिनफ्लुएंसर्स और सोशल मीडिया का जाल
युवाओं को स्टॉक मार्केट की ओर आकर्षित करने में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका अहम है। ये “फिनफ्लुएंसर्स” लग्जरी लाइफस्टाइल और झूठे सफलता के किस्से साझा करके युवाओं को भ्रमित करते हैं। उदाहरण के लिए, वे “30 दिनों में 1 लाख कमाएं” जैसे आकर्षक हेडलाइन्स के साथ कोर्स बेचते हैं, जबकि उनकी असली कमाई इन्हीं कोर्सेज से होती है । सेबी के अनुसार, 2023 तक 30 साल से कम उम्र के निवेशकों का प्रतिशत 18% से बढ़कर 45% हो गया, जो इस प्रभाव को दर्शाता है।
2. गेमिफिकेशन: ट्रेडिंग एप्स का खतरनाक खेल
आधुनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स ने निवेश को एक “गेम” में बदल दिया है। लीडरबोर्ड, बैजेस, और इन-ऐप नोटिफिकेशन्स युवाओं को लगातार ट्रेडिंग के लिए प्रेरित करते हैं। इससे उनमें FOMO (Fear of Missing Out) की भावना पैदा होती है, जो तर्कहीन निर्णयों को जन्म देती है। डॉ. पार्थ सोनी, एक मनोचिकित्सक, के अनुसार, शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग से डोपामाइन रिलीज होता है, जो जुआ खेलने जैसा व्यसन पैदा करता है । यही कारण है कि कई युवा लगातार नुकसान के बावजूद ट्रेडिंग जारी रखते हैं।
3. पंप एंड डंप स्कीम्स: कृत्रिम उछाल का झांसा
सस्ते शेयरों (पेनी स्टॉक्स) को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफवाहें युवाओं को आसान मुनाफे का लालच देती हैं। उदाहरण के लिए, किसी छोटी कंपनी के शेयर की कीमत ₹1 से ₹10 तक पहुंचने की अफवाह फैलाई जाती है। जब बड़ी संख्या में निवेशक इसमें पैसा लगाते हैं, तो कीमतें अस्थायी रूप से बढ़ जाती हैं। लेकिन जैसे ही बड़े निवेशक मुनाफा काटकर निकलते हैं, शेयर गिर जाते हैं, और छोटे निवेशक फंस जाते हैं। 2023 में सेबी ने ऐसी 55 कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की थी ।
4. वित्तीय अज्ञानता: जोखिम को न समझ पाना
नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंस एजुकेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में केवल 27% वयस्क और 16.7% किशोर ही वित्तीय रूप से साक्षर हैं। युवा बिना रिसर्च के सोशल मीडिया टिप्स पर भरोसा करते हैं। उदाहरण के लिए, चेन्नई के भुवनेश ने दोस्तों से उधार और बैंक लोन लेकर F&O ट्रेडिंग शुरू की, लेकिन 46 लाख रुपये के नुकसान के बाद आत्महत्या कर ली । सेबी के एक अध्ययन में पाया गया कि 93% F&O ट्रेडर्स को नुकसान होता है, फिर भी युवा इसे “आसान पैसा” समझते हैं ।
5. मनोवैज्ञानिक दबाव: रिवेंज ट्रेडिंग और आशावादी पूर्वाग्रह
नुकसान होने पर कई युवा “रिवेंज ट्रेडिंग” की ओर मुड़ते हैं, यानी पुराने घाटे को पूरा करने के लिए अधिक आक्रामक ट्रेडिंग। यह चक्र उन्हें और गहरे संकट में धकेलता है। प्रसिद्ध ट्रेडिंग मेंटर प्रकाश गाबा के अनुसार, “स्टॉक मार्केट में भावनाएं बुद्धि पर हावी हो जाती हैं” । इसके अलावा, “कंफर्मेशन बायस” के कारण युवा केवल उन्हीं जानकारियों पर ध्यान देते हैं जो उनके मुनाफे के दावों को सही ठहराती हैं।
समाधान: जागरूकता और नियमन की दरकार
- वित्तीय शिक्षा का विस्तार: स्कूल और कॉलेज स्तर पर इन्वेस्टमेंट, रिस्क मैनेजमेंट, और टैक्स प्लानिंग से जुड़े कोर्सेज अनिवार्य करने होंगे।
- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर नियंत्रण: सेबी को अनरेगुलेटेड फिनफ्लुएंसर्स के लिए सर्टिफिकेशन फ्रेमवर्क बनाना चाहिए ।
- ट्रेडिंग एप्स का जिम्मेदार डिज़ाइन: एप्स में “जोखिम चेतावनी” और दैनिक ट्रेडिंग लिमिट जैसे फीचर्स जोड़े जाने चाहिए।
- मनोवैज्ञानिक सहायता: ट्रेडिंग एडिक्शन से निपटने के लिए काउंसलिंग सेंटर्स और हेल्पलाइन्स शुरू की जानी चाहिए।
स्टॉक मार्केट दीर्घकालिक संपत्ति निर्माण का माध्यम हो सकता है, लेकिन युवाओं की “शॉर्टकट” मानसिकता इसे जुए में बदल रही है। इस समस्या से निपटने के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी, शिक्षा, और सख्त नियमन तीनों स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है। जैसा कि रॉबर्ट शिलर ने कहा, “आर्थिक बुलबुले सामाजिक संक्रमण से पैदा होते हैं”—और यही संक्रमण अब भारतीय युवाओं को प्रभावित कर रहा है।