भारतीय रक्षा मंत्रालय के पास देश भर में फैली लगभग 17 लाख एकड़ भूमि है, जिसका एक बड़ा हिस्सा वर्षों से अप्रयुक्त या अवैध कब्जों में फंसा हुआ है। इन संसाधनों के उचित उपयोग और रक्षा बजट को सशक्त बनाने के लिए मंत्रालय ने एक नई योजना तैयार की है। इसके तहत अप्रयुक्त भूमि को आर्थिक लाभ में बदलकर सेना के आधुनिकीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश किया जाएगा। आइए, इस योजना के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं।
अप्रयुक्त भूमि: चुनौतियां और अवसर
रक्षा मंत्रालय की भूमि मुख्यतः सैन्य ठिकानों, प्रशिक्षण केंद्रों, आवासीय परिसरों और रणनीतिक संरक्षित क्षेत्रों में फैली है। समय के साथ, शहरीकरण और तकनीकी बदलावों के कारण इनमें से कई भूखंडों का उपयोग घट गया है। उदाहरण के लिए:
- 20,000 एकड़ से अधिक भूमि सैन्य फार्मों के बंद होने के बाद बेकार पड़ी है।
- 8,000 एकड़ निष्क्रिय हवाई अड्डों और सैन्य कैंपों के आसपास स्थित है।
- 1,243 करोड़ रुपए मूल्य की भूमि पर अवैध कब्जा है।
इसके अलावा, शहरीकरण के कारण कई भूखंड अब रणनीतिक दृष्टि से अनुपयुक्त हो गए हैं, जैसे कि शहरों के बीच में स्थित पुराने प्रशिक्षण मैदान। ऐसी भूमि का रखरखाव महंगा है, और अवैध कब्जों को हटाने में भी संसाधन खर्च होते हैं।
मुद्रीकरण की रणनीति: कैसे कमाए जाएंगे पैसे?
रक्षा मंत्रालय ने इन भूखंडों के उपयोग के लिए कई विकल्प तैयार किए हैं:
1. लीज (पट्टा) पर भूमि का आवंटन
- सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए भूमि को लीज पर देना प्राथमिक विकल्प है। उदाहरण के लिए, निजी कंपनियों को औद्योगिक पार्क, वाणिज्यिक परिसर, या पर्यटन केंद्र बनाने की अनुमति दी जा सकती है।
- इससे मिलने वाला किराया सीधे रक्षा बजट में जोड़ा जाएगा।
2. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का विकास
- सरकारी परियोजनाओं जैसे हाईवे, रेलवे, या स्मार्ट सिटी के लिए भूमि का उपयोग। इसमें “इक्वल वैल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर” की अवधारणा भी शामिल है, जहां रक्षा मंत्रालय किसी अन्य सरकारी एजेंसी के साथ भूमि की अदला-बदली (स्वैप) कर सकता है।
3. पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण
- बंजर या कम उपयोग वाली भूमि पर वनीकरण करना। इससे न केवल राजस्व मिलेगा, बल्कि हरित ऊर्जा परियोजनाओं (जैसे सोलर पार्क) के लिए भी अवसर मिलेंगे।
4. शिक्षा और अनुसंधान केंद्र
- रक्षा प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, या एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में संस्थान स्थापित करना।
कानूनी ढांचा और नीतिगत बदलाव
भूमि के मुद्रीकरण के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है। प्रमुख अधिनियमों में शामिल हैं:
– छावनी अधिनियम, 2006
यह कानून छावनी क्षेत्रों में भूमि के प्रबंधन, उपयोग, और कराधान को नियंत्रित करता है। धारा 346 के तहत रक्षा मंत्रालय को इन क्षेत्रों में नियम बनाने का अधिकार है।
– रक्षा संपदा नियम, 2021
इसके तहत छावनी भूमि को तीन श्रेणियों (A, B, C) में बांटा गया है, जिनके आधार पर लीज दरें और उपयोग के नियम तय होते हैं।
– सरकारी संपत्ति अधिनियम, 1984
अवैध कब्जों को हटाने और संपत्ति की सुरक्षा के लिए प्रावधान।
हाल ही में, रक्षा मंत्रालय ने भूमि हस्तांतरण नियमों में ढील देकर सरकारी एजेंसियों और PSUs को भूमि आवंटन की प्रक्रिया सरल बनाई है। हालांकि, निजी कंपनियों को भूमि देने के लिए अभी स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।
चुनौतियां और समाधान
- अवैध कब्जे की समस्या:
- लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपए मूल्य की भूमि पर अवैध कब्जा है। इसे हटाने के लिए रक्षा संपदा अधिकारियों को अधिकार दिए गए हैं, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक दबावों के कारण प्रक्रिया धीमी है।
- पर्यावरणीय चिंताएं:
- वनीकरण या औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटित करते समय पर्यावरण मानकों का पालन जरूरी है।
- राजस्व आवंटन:
- प्राप्त धन का 50% रक्षा आधुनिकीकरण में और 50% सरकारी कोष में जमा करने का प्रस्ताव है। इससे पारदर्शिता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
भविष्य की राह: संभावनाएं और लाभ
- इस योजना से 10,000 करोड़ रुपए से अधिक का अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करने का लक्ष्य है।
- धन का उपयोग सेना के हथियारों, सैन्य ढांचे, और तकनीकी उन्नयन में किया जाएगा।
- रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे का विकास, और भूमि का कुशल उपयोग जैसे अप्रत्यक्ष लाभ भी मिलेंगे।
रक्षा मंत्रालय की यह पहल न केवल अप्रयुक्त संसाधनों का सदुपयोग है, बल्कि रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम भी है। हालांकि, सफलता के लिए नीतियों का स्पष्ट क्रियान्वयन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, और स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय जरूरी है। यदि यह योजना सही ढंग से लागू होती है, तो यह भारत की रक्षा तैयारियों और आर्थिक विकास दोनों को गति देगी।