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मासिक धर्म एक प्राकृतिक और अनिवार्य शारीरिक प्रक्रिया है, लेकिन इससे जुड़े उत्पादों द्वारा पैदा किया जाने वाला कचरा आज वैश्विक पर्यावरणीय संकट का एक गंभीर पहलू बन गया है। डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड्स और टैम्पोन्स के बढ़ते उपयोग ने न केवल भूमि भराव स्थलों को प्रदूषित किया है, बल्कि प्लास्टिक और केमिकल युक्त ये उत्पाद प्रकृति के लिए दीर्घकालिक खतरा बन रहे हैं। यह विषय अक्सर सामाजिक टैबू और संकोच के कारण चर्चा से दूर रहता है, परंतु पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से इस पर विमर्श अनिवार्य है।
एक अनुमान के अनुसार, केवल अमेरिका में प्रतिवर्ष 20 अरब डिस्पोजेबल मासिक धर्म उत्पाद कचरे में मिलते हैं, जो लगभग 2,40,000 टन प्लास्टिक कचरे के बराबर है। भारत जैसे देश में, जहां जनसंख्या अधिक है और स्वच्छता उत्पादों की पहुंच सीमित, यह समस्या और विकराल है। अधिकांश पैड्स में 90% तक प्लास्टिक होती है, जिसमें पॉलीथीन और चिपकाने वाले केमिकल्स शामिल हैं। ये पदार्थ न तो जल्दी विघटित होते हैं और न ही जैविक रूप से अपघटित, बल्कि 500 से 800 वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं। इसके अलावा, उत्पादन प्रक्रिया में पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक और कीटनाशकयुक्त कपास का उपयोग ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है।
हाल के अध्ययनों ने मेंस्ट्रुअल कप और पीरियड पैंटी जैसे पुनः उपयोग योग्य उत्पादों को पर्यावरण के लिए सर्वोत्तम बताया है। मेंस्ट्रुअल कप (जो सिलिकॉन या रबर से बने होते हैं) एक बार खरीदे जाने पर 10 वर्षों तक उपयोग किए जा सकते हैं। ये न केवल कचरे को 99% तक कम करते हैं, बल्कि दीर्घकाल में आर्थिक बचत भी प्रदान करते हैं। वहीं, पीरियड पैंटी (विशेष अंडरवियर जो रक्त सोखती है) को धोकर बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, इन विकल्पों को अपनाने में सामाजिक मानसिकता और स्वच्छता को लेकर भ्रांतियां बाधक हैं।
ऑर्गेनिक कपास से बने पैड्स और टैम्पोन्स को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, लेकिन शोध बताते हैं कि इनके उत्पादन में पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक पानी और भूमि की खपत होती है। साथ ही, इनमें मौजूद प्राकृतिक रेशों के उपचार के लिए इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स भी जल प्रदूषण का कारण बनते हैं। इस प्रकार, “हरित” लेबल वाले उत्पाद भी पूरी तरह निर्दोष नहीं हैं।
मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर गरीबी (पीरियड पॉवर्टी) एक विकट समस्या है। लाखों महिलाएं आज भी गंदे कपड़े या अशुद्ध सामग्री का उपयोग करती हैं, जिससे संक्रमण और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ते हैं। स्पेन के कैटालोनिया जैसे क्षेत्रों ने रीयूजेबल उत्पादों को निःशुल्क वितरित करके एक मिसाल कायम की है। भारत में भी ऐसी नीतियों की आवश्यकता है, जो न केवल सैनिटरी उत्पादों की पहुंच बढ़ाएं, बल्कि पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल विकल्पों को प्रोत्साहित करें।
साथ ही, स्कूलों और समुदायों में मासिक धर्म स्वच्छता और पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं। महिलाओं को पुनः उपयोग योग्य उत्पादों के सही उपयोग और रखरखाव के बारे में शिक्षित करना चाहिए, ताकि स्वच्छता के साथ-साथ प्रकृति का भी ध्यान रखा जा सके।
मासिक धर्म अपशिष्ट प्रबंधन केवल महिलाओं का नहीं, बल्कि पूरे समाज का दायित्व है। सरकारों को चाहिए कि वे सस्टेनेबल उत्पादों पर सब्सिडी दें, निर्माताओं के लिए पारदर्शिता और केमिकल मानक निर्धारित करें, और जनता को जागरूक करें। हर व्यक्ति छोटे-छोटे बदलावों से योगदान दे सकता है—चाहे वह मेंस्ट्रुअल कप अपनाना हो या पीरियड पैंटी का उपयोग। याद रखें, प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है, और यह बदलाव समय की मांग है।