Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
भारत में धर्मांतरण हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। हाल ही में, मध्य प्रदेश सरकार ने जबरन धर्मांतरण के मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान करने की घोषणा की है। यह कदम न केवल कानूनी बहसों को जन्म दे रहा है, बल्कि यह संविधान में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा के बीच तनाव को भी उजागर करता है। आइए, इस नए कानून के पीछे के तर्कों, संवैधानिक प्रावधानों, और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को गहराई से समझें।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर घोषणा की कि राज्य में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 में संशोधन कर जबरन धर्मांतरण के दोषियों को मृत्युदंड का प्रावधान जोड़ा जाएगा। इससे पहले, इस कानून के तहत अधिकतम सजा 10 वर्ष के कारावास और 50,000 रुपये का जुर्माना थी। नया प्रस्ताव उन मामलों में लागू होगा जहां धर्मांतरण कराने के लिए धोखाधड़ी, बल प्रयोग, या शादी का झांसा दिया गया हो।
यह कदम उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में पहले से लागू कठोर कानूनों की तर्ज पर उठाया गया है। हालांकि, मध्य प्रदेश ऐसा करने वाला पहला राज्य है जहां मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है। सरकार का तर्क है कि यह महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों को “धर्म के नाम पर शोषण” से बचाने के लिए आवश्यक है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25-28 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने, और प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता शामिल है। हालांकि, यह अधिकार “सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, और स्वास्थ्य” की शर्तों के अधीन है।
नए कानून की आलोचना करने वालों का मानना है कि यह अनुच्छेद 25 के साथ टकराता है, जो धर्म प्रचार की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, ईसाई मिशनरियों द्वारा शिक्षा या चिकित्सा सेवाओं के बदले धर्मांतरण को “जबरन” माना जाएगा, भले ही व्यक्ति की सहमति हो। इसी तरह, शादी के बाद धर्म बदलने को भी संदेह की नजर से देखा जा सकता है। आलोचकों का कहना है कि यह कानून अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों को दबाने का औजार बन सकता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां राज्य किसी एक धर्म को प्राथमिकता नहीं देता। 1976 के 42वें संविधान संशोधन ने प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़कर इस सिद्धांत को मजबूत किया। हालांकि, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म के प्रति उदासीनता नहीं, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान है।
मध्य प्रदेश के कानून पर सवाल उठता है: क्या धर्मांतरण को रोकने के लिए मृत्युदंड जैसी कठोर सजा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप है? सर्वोच्च न्यायालय ने स्टेन्सी स्वामी बनाम भारत संघ (2018) के मामले में कहा था कि “धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत पसंद पर आधारित होना चाहिए, न कि दबाव या प्रलोभन पर।” इसलिए, कानून का उद्देश्य जबरन धर्मांतरण रोकना होना चाहिए, न कि स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाना।
मध्य प्रदेश से पहले, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और गुजरात जैसे राज्यों ने भी जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कठोर कानून बनाए हैं। उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून, 2021 के तहत दोषियों को आजीवन कारावास और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। हालांकि, इन कानूनों के कारण समाज में ध्रुवीकरण बढ़ने की भी रिपोर्ट्स आई हैं।
वहीं, केरल और नागालैंड जैसे राज्यों में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों को लेकर सामाजिक स्वीकार्यता अधिक है। यह दर्शाता है कि कानून का प्रभाव क्षेत्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों पर निर्भर करता है।
भारतीय न्यायपालिका ने धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया है:
इन निर्णयों से स्पष्ट है कि कानून का उद्देश्य जबरन धर्मांतरण रोकना है, न कि धार्मिक प्रचार पर पाबंदी लगाना।