डोनाल्ड ट्रंप का गोल्ड कार्ड प्रस्ताव, अमेरिकी नागरिकता अब सिर्फ 5 मिलियन डॉलर में!

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक ऐसी योजना का ऐलान किया है, जो दुनियाभर के अमीरों के लिए अमेरिकी नागरिकता का सपना आसान बना सकती है। “गोल्ड कार्ड” नामक इस नई इमिग्रेशन पहल के तहत, कोई भी व्यक्ति 5 मिलियन डॉलर (लगभग 43-44 करोड़ रुपए) के निवेश के बदले तुरंत अमेरिकी नागरिकता हासिल कर सकता है। यह प्रस्ताव पुराने EB-5 वीजा कार्यक्रम को बदलने के लिए लाया गया है, जिसे ट्रंप प्रशासन ने “फ्रॉड” और “अप्रभावी” बताया है। आइए, इस योजना के हर पहलू को समझें।


EB-5 से गोल्ड कार्ड तक: अमेरिकी नीति में बदलाव

अमेरिका में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 1990 में EB-5 वीजा प्रोग्राम शुरू किया गया था। इसके तहत, 1.05 मिलियन डॉलर (कुछ क्षेत्रों में 800,000 डॉलर) के निवेश और 10 नौकरियां सृजित करने पर ग्रीन कार्ड दिया जाता था। हालांकि, इस योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कई मामलों में निवेशकों ने नौकरियां सृजित करने की शर्त को पूरा नहीं किया, या फर्जी प्रोजेक्ट्स के जरिए नागरिकता हासिल की। ट्रंप ने 2021 में निवेश राशि बढ़ाकर 1.8 मिलियन डॉलर कर दी, लेकिन एक अदालती फैसले के बाद इसे वापस घटा दिया गया।

इन्हीं समस्याओं को देखते हुए, अब EB-5 को पूरी तरह खत्म करके “गोल्ड कार्ड” योजना लाई जा रही है। ट्रंप का दावा है कि यह नई पहल अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत करेगी और कर्ज चुकाने में मदद करेगी।


गोल्ड कार्ड योजना की मुख्य विशेषताएं

  1. निवेश राशि: 5 मिलियन डॉलर (लगभग 43-44 करोड़ रुपए)।
  2. तत्काल नागरिकता: पुराने EB-5 प्रोग्राम में 5-7 साल का इंतजार करना पड़ता था, लेकिन गोल्ड कार्ड के तहत निवेशकों को तुरंत नागरिकता मिलेगी।
  3. कोई जॉब क्रिएशन शर्त नहीं: EB-5 के विपरीत, इसमें रोजगार सृजित करने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है।
  4. सभी देशों के लिए खुला: भारत, रूस, चीन समेत किसी भी देश का निवेशक आवेदन कर सकता है।

अमेरिका को क्या मिलेगा?

ट्रंप के अनुसार, यह योजना अमेरिका को “लेनदेन आधारित” (ट्रांजैक्शनल) नीति पर ले जाएगी। अगर अनुमानित 1 मिलियन लोग भी गोल्ड कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, तो अमेरिका को 5 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 435 लाख करोड़ रुपए) मिलेंगे। इससे देश का 34.5 ट्रिलियन डॉलर का राष्ट्रीय कर्ज चुकाने में मदद मिल सकती है।


भारतीयों के लिए क्या मायने हैं?

भारत में ऐसे कई धनाढ्य व्यक्ति हैं, जो अमेरिकी नागरिकता चाहते हैं, लेकिन EB-5 की लंबी वेटिंग लिस्ट (7-10 साल) के कारण उनका सपना अधूरा रह जाता है। गोल्ड कार्ड उनके लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है। हालांकि, यह योजना सिर्फ “सुपर-रिच” वर्ग तक सीमित है। मध्यम वर्ग या H-1B वीजा धारकों के लिए EB-5 जैसे विकल्प अब और मुश्किल हो सकते हैं।


विवाद और आलोचनाएं

  • नैतिकता पर सवाल: क्या नागरिकता को सिर्फ पैसे से खरीदा जा सकता है? आलोचकों का मानना है कि यह योजना अमेरिकी मूल्यों के विरुद्ध है।
  • रूसी ओलिगार्क्स को फायदा: ट्रंप ने खुलकर कहा कि रूस के अमीर भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं, जिससे अमेरिका-रूस संबंधों पर सवाल उठे हैं।
  • EB-5 की विरासत: EB-5 के दौरान ट्रंप परिवार पर भी प्रॉपर्टी डील्स में गबन के आरोप लगे थे। गोल्ड कार्ड को लेकर भी पारदर्शिता की चिंताएं हैं।

क्या यह योजना सफल होगी?

गोल्ड कार्ड का सबसे बड़ा आकर्षण “तत्काल नागरिकता” है। चीन और भारत जैसे देशों में अमीरों की बड़ी आबादी को देखते हुए, अमेरिका को भारी निवेश मिलने की संभावना है। हालांकि, यह योजना अमेरिकी समाज में आर्थिक असमानता को बढ़ा सकती है। साथ ही, यदि निवेशकों का पैसा उत्पादक क्षेत्रों में नहीं लगा, तो अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक फायदे नहीं मिलेंगे।


डोनाल्ड ट्रंप की “गोल्ड कार्ड” योजना, अमेरिकी इमिग्रेशन नीति में एक क्रांतिकारी बदलाव है। यह दुनिया के धनाढ्य वर्ग को लुभाने के साथ-साथ अमेरिका की आर्थिक चुनौतियों को हल करने का दावा करती है। हालांकि, इसके नैतिक और सामाजिक प्रभावों पर बहस जारी है। भारत जैसे देशों में इसका असर यह होगा कि अमीरों के लिए अमेरिकी सपना सच होगा, जबकि मध्यम वर्ग को और संघर्ष करना पड़ेगा। अगले दो हफ्तों में इसके नियम स्पष्ट होंगे, तब पता चलेगा कि क्या यह योजना वाकई “अमेरिका फर्स्ट” की नीति को सार्थक कर पाएगी।

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