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'Yeshu Yeshu' Bajinder Singh rape convict sentenced to life imprisonment

‘येशु येशु’ बजिंदर सिंह बलात्कार का दोसी उम्रकैद की सजा

भारत में धार्मिक आस्था और अंधविश्वास के बीच की पतली रेखा अक्सर धुंधली हो जाती है। यही कारण है कि समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते हैं, जहाँ “धर्मगुरु” या “बाबा” कहे जाने वाले लोगों द्वारा भोले-भाले लोगों का शोषण किया जाता है। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला हरियाणा के यमुना नगर के रहने वाले बजिंदर सिंह का है, जिसे हाल ही में एक यौन शोषण के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह मामला न सिर्फ एक व्यक्ति के अपराध को उजागर करता है, बल्कि समाज में फैले धार्मिक पाखंड और सिस्टमेटिक शोषण की परतें खोलता है।

बजिंदर सिंह संदिग्ध पृष्ठभूमि से ‘पादरी’ तक का सफर

बजिंदर सिंह का जन्म 1982 में हरियाणा के यमुना नगर में हुआ। उसकी पृष्ठभूमि शुरू से ही विवादास्पद रही। 2012 में एक हत्या के मामले में जेल की सजा काटने के दौरान उसने दावा किया कि उसे “आध्यात्मिक ज्ञान” (इनलाइटनमेंट) प्राप्त हुआ है। जेल से रिहा होने के बाद, 2016 में उसने ‘चर्च ऑफ ग्लोरी एंड विजडम’ नामक एक संस्था की स्थापना की, जो पंजाब के जालंधर और आसपास के इलाकों में सक्रिय हुई। शुरुआत में उसने लोगों को ईसाई धर्म के प्रति आकर्षित करने का प्रयास किया, जिसमें उसने बाइबल के शिक्षण और “चमत्कारिक उपचार” का हवाला दिया।

हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म प्रचार की आज़ादी है, लेकिन बजिंदर सिंह पर जल्द ही जबरन धर्मांतरण और महिलाओं के शोषण के आरोप लगने लगे। उसकी संस्था का विस्तार तेजी से हुआ, खासकर पंजाब में, जहाँ ईसाई धर्म के प्रति लोगों की रुचि बढ़ रही थी।

2018 का वह शिकार एक पीड़िता की दास्तान

2017-18 का वह दौर था, जब बजिंदर सिंह की गतिविधियाँ चरम पर थीं। एक घटना पंजाब के जीरकपुर गाँव की है, जहाँ एक महिला सड़क किनारे खाना खा रही थी। बजिंदर ने उससे संपर्क किया और लंदन जाने में मदद का झांसा देकर उसे अपने मोहाली (सेक्टर 63) स्थित घर पर बुलाया। वहाँ पहुँचने के बाद उसने महिला का बलात्कार किया और उसकी निजी वीडियो बनाकर ब्लैकमेलिंग शुरू कर दी। पीड़िता ने साहस जुटाकर 2018 में केस दर्ज कराया, लेकिन ताकतवर नेटवर्क और धमकियों के कारण न्याय में सात साल लग गए।

सिस्टम से टकराव

पीड़िता के अनुसार, उसे लंबे समय तक धमकाया गया, उसके वीडियो लीक करने की धमकी दी गई, और सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ा। पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 323 (जानबूझकर चोट पहुँचाना), और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत केस दर्ज किया। हालाँकि, बजिंदर सिंह का प्रभाव इतना गहरा था कि वह विदेश यात्राएँ करता रहा और सोशल मीडिया पर अपनी छवि बनाए रखी। 2024 में आखिरकार कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन इस दौरान पीड़िता की ज़िंदगी नर्क बन गई।

एक और पीड़िता नाबालिग लड़की की आपबीती

2017-18 में ही एक और घटना सामने आई, जब एक 17 वर्षीय लड़की बजिंदर के संपर्क में आई। वह बाइबल पढ़ने और ईसाई धर्म में रुचि के कारण उसके चर्च जाने लगी। शुरुआत में बजिंदर ने उसे “पापा जी” कहकर पिता समान स्नेह दिखाया, लेकिन बाद में उसने लड़की को अश्लील संदेश भेजे, शारीरिक शोषण किया, और एक केबिन में बंद कर मारपीट की। 28 फरवरी 2024 को लड़की ने पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज कराया, जिसमें यह भी आरोप लगा कि बजिंदर ने कुछ महिलाओं को जीबी रोड (दिल्ली की रेड-लाइट एरिया) तक बेच दिया था।

हिंसा और पाखंड का खुलासा

इस बीच एक वायरल वीडियो ने बजिंदर के चेहरे को पूरी तरह बेनकाब कर दिया। इसमें वह एक महिला और उसकी नाबालिग बच्ची के साथ मारपीट करता दिखाई दिया। पीड़िता के अनुसार, यह सजा सिर्फ इसलिए दी गई क्योंकि वह अपनी बहन को बजिंदर के चर्च नहीं ला रही थी। इस घटना ने साबित किया कि बजिंदर का संपूर्ण व्यक्तित्व हिंसा, दंभ और पैसे के लिए धर्म के दुरुपयोग पर टिका था।

समाज और व्यवस्था

बजिंदर सिंह जैसे मामले सवाल खड़े करते हैं कि आखिर धार्मिक संस्थाओं की जवाबदेही क्यों नहीं तय होती? भारत की चर्च काउंसिल ने इस मामले में कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया? कई ईसाई धर्मगुरुओं ने निंदा जरूर की, लेकिन व्यवस्थागत सुधार नहीं हुए। दूसरी ओर, पुलिस और प्रशासन की लचरता ने ऐसे अपराधियों को बढ़ावा दिया।

आस्था बनाम अंधविश्वास

इस मामले से हमें यह सबक लेना चाहिए कि धार्मिक आज़ादी और अंधविश्वास के बीच का फर्क समझें। यीशु मसीह, गुरु नानक, या किसी भी धर्मगुरु की शिक्षाएँ मानवता और नैतिकता पर आधारित हैं, न कि शोषण और पाखंड पर। जरूरत इस बात की है कि हम संदिग्ध “चमत्कारों” और “गुरुओं” से सावधान रहें, जो गरीबी, अशिक्षा, और सामाजिक कमजोरियों का फायदा उठाते हैं।

बजिंदर सिंह का मामला कोई अकेली घटना नहीं है। यह उस सिस्टम की ओर इशारा करता है, जहाँ धर्म के नाम पर अपराधी सुरक्षित हो जाते हैं। न्याय का मिलना संतोषजनक है, लेकिन समाज को जागरूक होकर ऐसे शोषणकारी तत्वों को बेनकाब करना होगा। आइए, हम यीशु, गुरु नानक, या राम-कृष्ण की शिक्षाओं को उनके मूल रूप में अपनाएँ—जहाँ इंसानियत और न्याय सर्वोपरि हो।

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