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उत्तराखंड ने देश का पहला राज्य बनकर इतिहास रच दिया है, जिसने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू कर दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस महत्वपूर्ण कानून के क्रियान्वयन के लिए UCC पोर्टल लॉन्च किया। इस कदम का उद्देश्य सभी नागरिकों को समान अधिकार देना और शादी, तलाक, संपत्ति, और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान कानूनी ढांचा तैयार करना है।
समान नागरिक संहिता का उद्देश्य विभिन्न धार्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमियों के बावजूद सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करना है। यह शादी, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप, संपत्ति और बच्चों के अधिकारों से जुड़े मामलों में समानता सुनिश्चित करता है। इसके तहत, हलाला, बहुविवाह, बाल विवाह और तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को खत्म करने का प्रयास किया गया है।
UCC के तहत शादी के लिए न्यूनतम आयु तय की गई है:
लिव-इन रिलेशनशिप को वैध मानते हुए इसकी अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया है। साथ ही, रजिस्ट्रेशन की जानकारी माता-पिता को गोपनीय तरीके से दी जाएगी।
समान नागरिक संहिता ने बेटियों को सभी समुदायों में बराबरी का दर्जा देते हुए संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किए हैं। इसके अलावा, लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को भी संपत्ति में बराबर का हक मिलेगा। यह कदम समाज में भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है।
उत्तराखंड में अब किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपनी पहली पत्नी या पति के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं होगी। यह प्रावधान सभी नागरिकों पर लागू होगा।
हालांकि, UCC ने अनुसूचित जनजातियों और संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत संरक्षित समुदायों को इस कानून से बाहर रखा है। यह उनके सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए किया गया है।
उत्तराखंड सरकार ने 27 जनवरी को ‘समान नागरिक संहिता दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है। यह कदम न केवल कानूनी रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी एक नई शुरुआत का प्रतीक है।
उत्तराखंड का यह कदम न केवल महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करेगा, बल्कि समाज में व्याप्त असमानता को खत्म करने में भी सहायक होगा। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य स्पष्ट है—हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान अधिकार और कर्तव्य प्रदान करना।