वैश्विक अर्थव्यवस्था में दो बड़े खिलाड़ी, भारत और अमेरिका, अपने-अपने देशों में विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप का “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” और नरेंद्र मोदी का “मेक इन इंडिया” अभियान दोनों ही इसी लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में कदम हैं। लेकिन हाल ही में टेस्ला के भारत में फैक्ट्री स्थापित करने के निर्णय ने इस प्रतिस्पर्धा को नया मोड़ दे दिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस कदम को “अनुचित” बताते हुए अमेरिकी हितों के खिलाफ करार दिया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
टैरिफ युद्ध और वैश्विक व्यापार की चुनौतियाँ
अमेरिका और भारत के बीच व्यापार नीतियाँ लंबे समय से चर्चा का विषय रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने हमेशा यह दावा किया है कि अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले देश “टैरिफ के माध्यम से अमेरिका का फायदा उठाते हैं”। उनके अनुसार, भारत जैसे देश अमेरिकी वस्तुओं पर 100% तक का आयात शुल्क लगाते हैं, जबकि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर केवल 2.5% से 25% टैरिफ ही वसूलता है। इस असंतुलन का सीधा असर अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा पर पड़ता है।
टेस्ला का मामला इसका जीवंत उदाहरण है। भारत में टेस्ला की कारों पर 100% आयात शुल्क लगने के कारण उनकी कीमत दोगुनी हो जाती है। उदाहरण के लिए, ₹25 लाख की कार का दाम आयात शुल्क के बाद ₹50 लाख हो जाता है, जो भारतीय बाजार के लिए अव्यवहार्य है। इसी कारण एलन मस्क ने वर्षों तक भारत में प्रवेश करने से परहेज किया।
भारत की नई इलेक्ट्रिक व्हीकल नीति: टेस्ला के लिए खुली खिड़की
2023 में भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण नीति पेश की। इसके तहत, कोई भी विदेशी कंपनी (जैसे टेस्ला) भारत में 500 मिलियन डॉलर (लगभग 4,100 करोड़ रुपये) का निवेश करने और तीन वर्षों के भीतर स्थानीय उत्पादन शुरू करने के बदले में आयात शुल्क को 100% से घटाकर 15% कर सकती है। यह कदम टेस्ला के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ।
मोदी सरकार का यह फैसला दोहरे उद्देश्य को पूरा करता है:
- रोजगार सृजन और तकनीकी विकास: स्थानीय उत्पादन से नौकरियाँ बढ़ेंगी और EV टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण होगा।
- पर्यावरणीय लक्ष्य: 2070 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी का लक्ष्य हासिल करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार जरूरी है।
इस नीति के बाद, टेस्ला ने भारत में 2-3 बिलियन डॉलर (16,500-24,700 करोड़ रुपये) के निवेश की योजना बनाई है। कंपनी ने पहले ही मुंबई और दिल्ली में शोरूम खोलने के लिए जगहों का चयन कर लिया है, और अप्रैल 2024 तक रिटेल ऑपरेशन शुरू करने की उम्मीद है।
ट्रंप की आपत्ति: अमेरिकी नौकरियों को खतरा?
डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे तौर पर कहा है कि “अगर टेस्ला भारत में फैक्ट्री बनाता है, तो यह अमेरिका के प्रति अनुचित होगा।” उनका तर्क है कि अमेरिकी कंपनियों का विदेशों में उत्पादन स्थानांतरित होने से घरेलू रोजगार और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचता है। ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का मूलमंत्र यही है कि निवेश और नौकरियाँ अमेरिका में ही केंद्रित रहें।
हालाँकि, टेस्ला का मानना है कि भारत जैसे बड़े बाजार में उपस्थिति जरूरी है। भारत में मध्यम वर्ग की बढ़ती क्रय शक्ति और सरकार की EV सब्सिडी (जैसे FAME-II योजना) कंपनी के लिए आकर्षक हैं। साथ ही, चीन के बाद भारत एशिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है, जिसे नजरअंदाज करना टेस्ला के लिए मुश्किल है।
टेस्ला की चुनौतियाँ: कीमत और प्रतिस्पर्धा
भारत में टेस्ला की सफलता की राह आसान नहीं है। वर्तमान में, देश की टॉप 10 कारों में से 8 की कीमत 15 लाख रुपये से कम है, जबकि टेस्ला की सबसे सस्ती कार (Model 3) का मूल्य लगभग 50 लाख रुपये है। इस अंतर को पाटने के लिए टेस्ला को स्थानीय उत्पादन और लागत कम करनी होगी।
इसके अलावा, भारतीय बाजार में पहले से मजबूत प्रतिस्पर्धा है। टाटा, महिंद्रा और हुंडई जैसी कंपनियाँ पहले ही सस्ती इलेक्ट्रिक कारें लॉन्च कर चुकी हैं। टेस्ला को अपनी प्रीमियम इमेज और उच्च कीमत के बीच संतुलन बनाना होगा।
राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ:
ट्रंप की टिप्पणी के पीछे सिर्फ आर्थिक चिंताएँ नहीं, बल्कि राजनीतिक संदर्भ भी हैं। 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले ट्रंप अपने मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे अमेरिकी हितों के रक्षक हैं। दूसरी ओर, मोदी सरकार के लिए टेस्ला का निवेश ‘मेक इन इंडिया’ की सफलता का प्रतीक होगा, जो विदेशी कंपनियों को भारत में उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करता है।
निष्कर्ष:
टेस्ला का भारत में प्रवेश वैश्वीकरण और संरक्षणवाद के बीच चल रही लड़ाई का एक अध्याय है। जहाँ भारत विदेशी निवेश के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को गति देना चाहता है, वहीं अमेरिका अपने उद्योगों को बचाने की कोशिश कर रहा है। इस संदर्भ में, एलन मस्क का निर्णय व्यावसायिक समझदारी का उदाहरण है, जो बाजार की संभावनाओं को राजनीतिक दबावों से ऊपर रखता है।
भविष्य में, भारत को अपनी टैरिफ नीतियों में लचीलापन बनाए रखना होगा, ताकि विदेशी कंपनियाँ निवेश करने के साथ-साथ स्थानीय बाजार की जरूरतों को भी पूरा कर सकें। वहीं, अमेरिका को यह समझना होगा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सहयोग और प्रतिस्पर्धा का सही संतुलन ही टिकाऊ विकास की कुंजी है।