एक बार फिर अमेरिका के चर्चित नेता डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं। यह भव्य आयोजन 20 जनवरी को होगा, जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं। इस कार्यक्रम में दुनिया भर के दिग्गज नेताओं को आमंत्रित किया गया है। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बार व्यक्तिगत निमंत्रण नहीं मिला। उनके स्थान पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
यहां एक बड़ा सवाल खड़ा होता है: ट्रंप और मोदी की प्रसिद्ध “दोस्ती” के बावजूद यह स्थिति क्यों बनी?
आइए इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
क्या है शपथ ग्रहण समारोह?
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद शपथ ग्रहण समारोह आयोजित होता है, जिसमें नए राष्ट्रपति देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों की कसम खाते हैं। 20 जनवरी की तारीख इसके लिए संविधान के 20वें संशोधन के बाद तय की गई। इस बार का आयोजन बेहद खास है क्योंकि ट्रंप ने इस कार्यक्रम के लिए करीब $200 मिलियन का चंदा जुटाया है, जिसमें बड़ी-बड़ी कंपनियां जैसे माइक्रोसॉफ्ट, बोइंग, और गूगल शामिल हैं।
मोदी को निमंत्रण क्यों नहीं?
- डिप्लोमेटिक प्राथमिकताएं:
डोनाल्ड ट्रंप ने शी जिनपिंग, जॉर्जिया मेलोनी (इटली), और जापान के प्रधानमंत्री जैसे दिग्गज नेताओं को व्यक्तिगत निमंत्रण भेजा है। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ऐसा निमंत्रण नहीं मिला। भारत सरकार ने औपचारिक निमंत्रण के जवाब में विदेश मंत्री को भेजने का निर्णय लिया। - पुरानी राजनीति का असर:
2019 में मोदी ने अमेरिका में “अबकी बार ट्रंप सरकार” के नारे से ट्रंप का समर्थन किया था। यह वीडियो काफी चर्चित रहा। हालांकि 2020 में ट्रंप चुनाव हार गए। इस बार भारत ने किसी भी पक्ष का खुला समर्थन न करते हुए तटस्थता बनाए रखी। - टेस्ला और स्टारलिंक विवाद:
ट्रंप के करीबी एलन मस्क, जो टेस्ला और स्टारलिंक जैसी कंपनियों के मालिक हैं, भारत में इन कंपनियों के विस्तार को लेकर असंतोष जाहिर कर चुके हैं। भारत सरकार की उच्च टैक्स नीति और नियम इनके लिए बाधा बनी हुई है। - चीन के साथ समीकरण:
शी जिनपिंग का नाम निमंत्रण सूची में सबसे ऊपर है। यह अमेरिका की रणनीति को दर्शाता है, जो शायद भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना चाहता है।
क्या है भारत का रुख?
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत निमंत्रण के बिना शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे। विदेश मंत्री जयशंकर इस कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और विभिन्न द्विपक्षीय वार्ताओं में हिस्सा लेंगे।
आगे क्या?
इस घटना ने भारत-अमेरिका संबंधों पर नए सवाल खड़े किए हैं। क्या यह डोनाल्ड ट्रंप की नई रणनीति का हिस्सा है? या फिर यह उनके चुनावी अनुभवों का परिणाम है? जो भी हो, यह साफ है कि वैश्विक राजनीति में रिश्ते स्थायी नहीं होते।