Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
भारत की न्यायिक प्रणाली सदियों से न्याय के सिद्धांतों पर टिकी हुई है, लेकिन आज इसके सामने सबसे बड़ी चुनौती लंबित मामलों का बोझ और न्याय की धीमी गति है। हर साल करोड़ों नए मामले दर्ज होते हैं, जबकि पुराने मामले सालों-साल अदालतों की फाइलों में दबे रह जाते हैं। ऐसे में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और डिजिटल प्रौद्योगिकी इस समस्या का समाधान बनकर उभर रही है। भारत सरकार और न्यायपालिका ने “ई-कोर्ट प्रोजेक्ट” के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी, तेज और जन-हितैषी बनाने का संकल्प लिया है। आइए, समझते हैं कि कैसे एआई न्याय प्रणाली को बदलने में मददगार साबित होगा।
आज भारतीय अदालतों में लगभग 4.67 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें से 71% से अधिक एक साल से पुराने हैं। इनमें सिविल केसों की संख्या लगभग 1.09 करोड़ और आपराधिक मामले 3.57 करोड़ हैं। यह आंकड़ा न केवल न्यायिक संसाधनों की कमी को उजागर करता है, बल्कि पारंपरिक प्रक्रियाओं की अक्षमता को भी दर्शाता है। उदाहरण के लिए, किसी जज के स्थानांतरण के बाद नया जज मामले की फाइलों को फिर से पढ़ने में महीनों लगा देता है। ऐसे में, एआई द्वारा केस का सारांश तैयार करना समय और श्रम दोनों बचा सकता है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए 2007 में ई-कोर्ट प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जिसके तीन चरणों में न्यायालयों के डिजिटलीकरण का लक्ष्य रखा गया।
एआई की सभी क्षमताओं के बावजूद, न्यायिक प्रक्रिया का अंतिम निर्णय मानवीय विवेक पर ही निर्भर रहेगा। एआई केवल डेटा विश्लेषण, पूर्व निर्णयों के पैटर्न और तथ्यों का संग्रह करेगा। लेकिन न्याय के भावनात्मक पहलू, जैसे मानवाधिकार, सामाजिक न्याय या नैतिकता जैसे मुद्दों पर फैसला लेना जजों का ही दायित्व होगा। जैसे, किसी हत्या के मामले में आरोपी के इरादों या पश्चाताप का आकलन एआई नहीं कर सकता।
हालांकि एआई के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं। डेटा प्राइवेसी, साइबर सुरक्षा और एल्गोरिदम में पूर्वाग्रह की आशंका इसके प्रमुख मुद्दे हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी भी बाधक हो सकती है। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने ई-सेवा केंद्रों के माध्यम से गाँव-गाँव में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने का प्रयास शुरू किया है।
भारत की न्यायिक प्रणाली में एआई एक सहायक के रूप में उभर रहा है, न कि मानव का प्रतिस्थापन। यह तकनीक न केवल न्यायाधीशों और वकीलों का समय बचाएगी, बल्कि आम नागरिकों के लिए न्याय पाना भी सुलभ बनाएगी। जैसे-जैसे ई-कोर्ट प्रोजेक्ट का तीसरा चरण पूरा होगा, अदालतें अधिक पारदर्शी, दक्ष और जवाबदेह बनेंगी। हालांकि, इसकी सफलता के लिए तकनीकी नवाचार के साथ-साथ जनता का विश्वास और सहयोग भी जरूरी है। आने वाले समय में, एआई और मानवीय विवेक का यह सहयोग भारत को “डिजिटल न्याय” के लक्ष्य तक पहुँचाएगा।