भारत की न्यायिक प्रणाली सदियों से न्याय के सिद्धांतों पर टिकी हुई है, लेकिन आज इसके सामने सबसे बड़ी चुनौती लंबित मामलों का बोझ और न्याय की धीमी गति है। हर साल करोड़ों नए मामले दर्ज होते हैं, जबकि पुराने मामले सालों-साल अदालतों की फाइलों में दबे रह जाते हैं। ऐसे में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और डिजिटल प्रौद्योगिकी इस समस्या का समाधान बनकर उभर रही है। भारत सरकार और न्यायपालिका ने “ई-कोर्ट प्रोजेक्ट” के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी, तेज और जन-हितैषी बनाने का संकल्प लिया है। आइए, समझते हैं कि कैसे एआई न्याय प्रणाली को बदलने में मददगार साबित होगा।
न्यायिक अवरोधों का सामना
आज भारतीय अदालतों में लगभग 4.67 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें से 71% से अधिक एक साल से पुराने हैं। इनमें सिविल केसों की संख्या लगभग 1.09 करोड़ और आपराधिक मामले 3.57 करोड़ हैं। यह आंकड़ा न केवल न्यायिक संसाधनों की कमी को उजागर करता है, बल्कि पारंपरिक प्रक्रियाओं की अक्षमता को भी दर्शाता है। उदाहरण के लिए, किसी जज के स्थानांतरण के बाद नया जज मामले की फाइलों को फिर से पढ़ने में महीनों लगा देता है। ऐसे में, एआई द्वारा केस का सारांश तैयार करना समय और श्रम दोनों बचा सकता है।
ई-कोर्ट प्रोजेक्ट: तकनीकी क्रांति की ओर कदम
इन चुनौतियों से निपटने के लिए 2007 में ई-कोर्ट प्रोजेक्ट शुरू किया गया, जिसके तीन चरणों में न्यायालयों के डिजिटलीकरण का लक्ष्य रखा गया।
- पहला चरण (2007-2015): इस दौरान सभी जिला और अधीनस्थ न्यायालयों का कंप्यूटरीकरण किया गया। केसों का डेटा मैनेजमेंट सिस्टम, ई-कोर्ट पोर्टल और राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड जैसे प्लेटफॉर्म विकसित किए गए, जिससे नागरिक ऑनलाइन केस की स्थिति ट्रैक कर सकें।
- दूसरा चरण (2015-2023): इसमें ई-फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और पेपरलेस कोर्ट सिस्टम को बढ़ावा मिला। वर्चुअल कोर्ट्स की अवधारणा ने दूरदराज के इलाकों में न्याय तक पहुंच आसान बनाई।
- तीसरा चरण (2023-2027): यह चरण एआई और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों पर केंद्रित है। सरकार ने इसके लिए 7,721 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, जिनमें से 535.7 करोड़ रुपए सीधे एआई और ब्लॉकचेन को हाई कोर्ट्स में लागू करने के लिए हैं।
एआई कैसे बदलेगा न्याय का परिदृश्य?
- केस सारांश और विश्लेषण: एआई टूल्स 500 पन्नों के दस्तावेज़ को चंद मिनटों में पढ़कर मुख्य तथ्य, कानूनी धाराएं और पूर्व के निर्णयों का सारांश प्रस्तुत कर सकते हैं। इससे जजों को केस की मूल भावना समझने में आसानी होगी।
- स्वचालित केस आवंटन: एआई केस की गंभीरता, संवेदनशीलता और जटिलता के आधार पर उसे उपयुक्त जज के पास भेजेगा। इससे छोटे मामलों में त्वरित सुनवाई संभव होगी।
- भाषाई बाधाओं का समाधान: भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं और सैकड़ों बोलियों को एआई ट्रांसलेशन टूल्स द्वारी संभाला जाएगा। तमिल या तेलुगु में दर्ज केस का दस्तावेज़ हिंदी या अंग्रेजी में ऑटोमैटिक ट्रांसलेट हो सकेगा।
- 24×7 कानूनी सहायता: चैटबॉट और वर्चुअल असिस्टेंट्स आम नागरिकों को कानूनी प्रक्रियाओं, कोर्ट फीस या फॉर्म भरने में मार्गदर्शन देंगे।
- सबूतों का विश्लेषण: एआई ऑडियो, वीडियो और फोटोग्राफिक सबूतों की प्रामाणिकता जांच सकता है। उदाहरण के लिए, डीपफेक वीडियो को पहचानने में यह तकनीक उपयोगी होगी।
एआई की सभी क्षमताओं के बावजूद, न्यायिक प्रक्रिया का अंतिम निर्णय मानवीय विवेक पर ही निर्भर रहेगा। एआई केवल डेटा विश्लेषण, पूर्व निर्णयों के पैटर्न और तथ्यों का संग्रह करेगा। लेकिन न्याय के भावनात्मक पहलू, जैसे मानवाधिकार, सामाजिक न्याय या नैतिकता जैसे मुद्दों पर फैसला लेना जजों का ही दायित्व होगा। जैसे, किसी हत्या के मामले में आरोपी के इरादों या पश्चाताप का आकलन एआई नहीं कर सकता।
चुनौतियाँ और संभावनाएं
हालांकि एआई के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी हैं। डेटा प्राइवेसी, साइबर सुरक्षा और एल्गोरिदम में पूर्वाग्रह की आशंका इसके प्रमुख मुद्दे हैं। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी भी बाधक हो सकती है। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने ई-सेवा केंद्रों के माध्यम से गाँव-गाँव में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने का प्रयास शुरू किया है।
न्याय की नई उषा
भारत की न्यायिक प्रणाली में एआई एक सहायक के रूप में उभर रहा है, न कि मानव का प्रतिस्थापन। यह तकनीक न केवल न्यायाधीशों और वकीलों का समय बचाएगी, बल्कि आम नागरिकों के लिए न्याय पाना भी सुलभ बनाएगी। जैसे-जैसे ई-कोर्ट प्रोजेक्ट का तीसरा चरण पूरा होगा, अदालतें अधिक पारदर्शी, दक्ष और जवाबदेह बनेंगी। हालांकि, इसकी सफलता के लिए तकनीकी नवाचार के साथ-साथ जनता का विश्वास और सहयोग भी जरूरी है। आने वाले समय में, एआई और मानवीय विवेक का यह सहयोग भारत को “डिजिटल न्याय” के लक्ष्य तक पहुँचाएगा।