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पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हाल के दिनों में हुए हमलों ने एक बार फिर से इस क्षेत्र की अस्थिरता को वैश्विक सुर्खियों में ला दिया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे समूहों की गतिविधियाँ न केवल पाकिस्तानी सेना के लिए चुनौती बन रही हैं, बल्कि इससे देश के अंदरूनी हालात और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यह संघर्ष केवल सैन्य झड़पों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बलूच राष्ट्रवाद, प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण, और सामरिक महत्व वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसे मुद्दों से जुड़ा हुआ है।
पिछले कुछ सप्ताह में BLA ने दो बड़े हमले किए हैं। पहला हमला जाफर एक्सप्रेस ट्रेन पर किया गया, जिसमें समूह ने यात्रियों को बंधक बनाने का दावा किया। पाकिस्तानी अधिकारियों ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सुरक्षा बलों ने सभी को सुरक्षित बचा लिया, लेकिन स्थानीय सूत्रों के अनुसार, हिंसा में सैकड़ों लोगों के हताहत होने की आशंका है। दूसरा हमला फ्रंटियर कॉर्प्स के काफिले पर हुआ, जिसमें एक आत्मघाती धमाके से कई सैनिक मारे गए। BLA ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए दावा किया कि 90 पाकिस्तानी सैनिक ठिकाने पर लाए गए, जबकि सेना ने केवल 5 मौतें स्वीकार कीं।
ये घटनाएँ बताती हैं कि बलूचिस्तान में सुरक्षा स्थिति नाजुक बनी हुई है। पाकिस्तानी सेना और विद्रोही समूहों के बीच आंकड़ों का यह अंतर अक्सर प्रोपेगेंडा युद्ध का हिस्सा बन जाता है। दोनों पक्ष अपने-अपने नैरेटिव को मजबूत करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं।
बलूचिस्तान का संघर्ष नया नहीं है। 1948 में पाकिस्तान में विलय के बाद से ही यहाँ के निवासियों को लगता रहा है कि उनके संसाधनों का शोषण किया जा रहा है और उनकी सांस्कृतिक पहचान को दबाया जा रहा है। 1970 के दशक में जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में यह असंतोष और बढ़ा, जब बलूच नेताओं को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई की गई। इसी दौरान अब्दुल माजिद बलोच जैसे नेता उभरे, जिन्होंने भुट्टो सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1974 में भुट्टो को हत्या के प्रयास के बाद इन नेताओं को सजा दी गई, लेकिन यह घटना बलूच युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई।
2011 में माजिद ब्रिगेड के गठन के साथ BLA का प्रभाव बढ़ा। यह समूह फिदाई हमलों में माहिर है, जहाँ आत्मघाती हमलावर वाहनों या बाइकों का इस्तेमाल करते हैं। पिछले दो वर्षों में इन हमलों की तीव्रता और परिष्कार में वृद्धि हुई है, जिससे पाकिस्तानी सेना की कमजोरियाँ उजागर होती हैं।
बलूचिस्तान में अस्थिरता का सीधा असर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर पड़ रहा है। यह परियोजना चीन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ती है। हालाँकि, BLA ने CPEC को “नव-उपनिवेशवाद” बताते हुए इसके खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं। 2021 में ग्वादर के नजदीक चीनी नागरिकों पर हुए हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान से सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था। अब स्थिति यह है कि CPEC साइट्स पर तैनात 15,000 सैनिकों के बावजूद चीनी कंपनियों का विश्वास कम हो रहा है।
पाकिस्तानी सेना का दावा है कि वह आतंकवाद के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर काम कर रही है, लेकिन बलूचिस्तान के हालात इसके उलट दिखाई देते हैं। सेना अक्सर अतिरिक्त-न्यायिक हत्याओं और गुमशुदगियों के आरोपों से घिरी रहती है, जिससे स्थानीय आबादी का गुस्सा और बढ़ता है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर पाकिस्तान की आलोचना की है।
बलूचिस्तान संघर्ष का समाधान केवल सैन्य बल से संभव नहीं है। इसमें राजनीतिक संवाद और आर्थिक विकास की आवश्यकता है। पाकिस्तान सरकार ने 2000 के दशक में “बलूचिस्तान पैकेज” जैसे प्रयास किए, लेकिन उनमें पारदर्शिता की कमी और धन के दुरुपयोग के आरोपों ने इन्हें विफल बना दिया। अगर पाकिस्तान बलूच जनता के साथ विश्वास बहाल करने में विफल रहता है, तो यह संघर्ष और गहरा सकता है।
इसके अलावा, अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी और ईरान की सीमा पर अस्थिरता से भी बलूचिस्तान की स्थिति प्रभावित हो सकती है। क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका और अंतरराष्ट्रीकृत संघर्ष की आशंका इस मुद्दे को और जटिल बनाती है।
बलूचिस्तान का संघर्ष पाकिस्तान की राष्ट्रीय एकता के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। यहाँ की जटिलताएँ केवल सैन्य कार्रवाई से हल नहीं हो सकतीं। सरकार को बलूच लोगों की माँगों को गंभीरता से सुनना होगा और उनके साथ सम्मानजनक संवाद स्थापित करना होगा। साथ ही, CPEC जैसी परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। जब तक बलूचिस्तान में शांति और न्याय की उम्मीद नहीं जगेगी, तब तक पाकिस्तान के लिए स्थिरता एक सपना ही बनी रहेगी।