Pakistan is the epicenter of terrorism: कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रुख और आतंकवाद की कीमत

भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद दशकों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति की चर्चा का विषय रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में पाकिस्तान की ओर से इस मुद्दे को बार-बार उठाने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय समर्थन न मिलना उसकी विदेश नीति की विफलताओं को उजागर करता है। 19 फरवरी, 2024 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा कश्मीर मुद्दे और भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने की आलोचना एक बार फिर विवादों में घिर गई। इस बैठक में न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों ने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताकर उसकी नीतियों को खारिज कर दिया।

यूएनएससी बैठक: पाकिस्तान की कोशिश और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

शहबाज शरीफ ने 20 मिनट के संबोधन में कश्मीर को “विवादित क्षेत्र” बताया और अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग की। उनके इस प्रयास को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने नकार दिया। भारत के स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने पाकिस्तान को “वैश्विक आतंकवाद का एपीसेंटर” करार देते हुए कहा कि उसकी सीमा पार आतंकवाद को प्रश्रय देने की नीति क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है। अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने भी पाकिस्तान पर आतंकवादी समूहों को समर्थन देने का आरोप लगाया।

आतंकवाद के समर्थन में पाकिस्तान की भूमिका: ऐतिहासिक साक्ष्य

पाकिस्तान की आतंकवाद में संलिप्तता कोई नई बात नहीं है। 2008 की ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय आतंकवादी समूहों का प्रायोजक है। 2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि 2008 के मुंबई हमलों में पाकिस्तानी एजेंसियों की भूमिका थी। 2019 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी माना कि देश में 30,000-40,000 आतंकवादी सक्रिय हैं, जिन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त है।

अंतरराष्ट्रीय अलगाव: पाकिस्तान की बढ़ती समस्याएं

आतंकवाद के समर्थन के कारण पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है। 2016 में दक्षेस शिखर सम्मेलन के बहिष्कार के बाद से ही उसकी क्षेत्रीय विश्वसनीयता घटी है। वित्तीय मोर्चे पर, एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय ऋण और निवेश में कठिनाइयाँ बढ़ी हैं। अमेरिका ने 2018 में पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता रोक दी, जबकि यूरोपीय देशों ने उसकी आलोचना की है।

तालिबान और पाकिस्तान: विरोधाभासी संबंध

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान के लिए नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। पहले तालिबान का समर्थन करने वाले पाकिस्तान को अब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमलों का सामना करना पड़ रहा है। तालिबान शासित अफगानिस्तान ने पाकिस्तान पर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाया है, जबकि पाकिस्तान खुद टीटीपी की गतिविधियों के लिए अफगानिस्तान को जिम्मेदार ठहराता है। यह विरोधाभास पाकिस्तान की विदेश नीति की विफलताओं को दर्शाता है।

भारत का रुख:

भारत ने यूएनएससी में स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और अनुच्छेद 370 को हटाना पूरी तरह से आंतरिक मामला था। भारत के विदेश मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान का कश्मीर पर दावा ऐतिहासिक और कानूनी तथ्यों के विपरीत है। साथ ही, भारत ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता जारी रखी है, जबकि पाकिस्तान तालिबान के साथ संबंधों को लेकर दुविधा में है।


पाकिस्तान को यह समझना होगा कि आतंकवाद के समर्थन से उसकी वैश्विक साख नष्ट हो रही है। यदि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास जीतना चाहता है, तो उसे आतंकवाद से नाता तोड़ना होगा और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रति गंभीरता दिखानी होगी। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह कश्मीर सहित अपने संप्रभु अधिकारों पर किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा। पाकिस्तान के पास अब दो विकल्प हैं: या तो वह अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करे, या फिर अंतरराष्ट्रीय अलगाव और आर्थिक संकट का सामना करता रहे।


यूएनएससी की ताजा बैठक ने पाकिस्तान की विदेश नीति की कमजोरियों को उजागर किया है। कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन न मिलना और आतंकवाद के आरोपों में फंसना पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय है। भारत की दृढ़ स्थिति और कूटनीतिक सफलताएँ उसे क्षेत्रीय नेतृत्व की ओर अग्रसर कर रही हैं, जबकि पाकिस्तान को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

Leave a Comment