India is Europe’s new reliable partner: वैश्विक भूमिका में उभरता नेतृत्व

यूरोपीय संघ (ईयू) आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। अमेरिका पर दशकों की निर्भरता, यूक्रेन संकट से उपजी आर्थिक मंदी, और चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के प्रभाव ने यूरोप को नए सहयोगियों की तलाश में ला खड़ा किया है। इस संदर्भ में, भारत न केवल एक आशाजनक विकल्प के रूप में उभरा है, बल्कि वह यूरोप के लिए “नया अमेरिका” बनने की क्षमता रखता है। यह बदलाव केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भू-राजनीतिक संतुलन, प्रौद्योगिकी साझेदारी, और वैश्विक शासन में भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत देता है।

यूरोप की मजबूरियाँ और भारत का उभार

यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था वर्तमान में 0% विकास दर पर अटकी हुई है। कोविड-19 के बाद के संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध से ऊर्जा कीमतों में उछाल, और अमेरिका के साथ व्यापारिक तनावों ने इसे गहरे संकट में धकेल दिया है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा यूरोप पर 25% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी ने ईयू को नए बाजारों और निवेश की तलाश के लिए मजबूर किया। ऐसे में, भारत का 1.4 अरब की आबादी वाला बाजार, युवा जनसंख्या, और 6.5% की स्थिर विकास दर यूरोप के लिए राहत की साँस लेकर आया है।

मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की रणनीतिक महत्ता

भारत और ईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता 2025 तक पूरी होने की उम्मीद है। यह समझौता केवल टैरिफ कम करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सेवा क्षेत्र, डिजिटल व्यापार, और बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे नए आयाम शामिल हैं। भारत के लिए, यह समझौता यूरोपीय प्रौद्योगिकी और निवेश तक पहुँच का द्वार खोलेगा, जबकि ईयू को भारत के अर्धचालक, फार्मास्यूटिकल्स, और हरित ऊर्जा उत्पादों तक पहुँच मिलेगी। उदाहरण के लिए, भारत ने हाल ही में यूरोपीय प्रतिनिधियों को हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली बस में ले जाकर स्वच्छ ऊर्जा में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया।

चीन की चुनौती और IMEC का प्रतिद्वंद्विता

चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) ने यूरोप को आर्थिक रूप से उलझाने की कोशिश की, लेकिन “ऋण-जाल” की आशंकाओं और भू-राजनीतिक प्रभुत्व के डर ने कई यूरोपीय देशों को इससे दूर कर दिया। इसके जवाब में, भारत ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) प्रस्तावित किया है। यह परियोजना मुंद्रा (गुजरात) और मुंबई बंदरगाहों से शुरू होकर, यूएई और सऊदी अरब के रेल नेटवर्क से जुड़ते हुए, इज़राइल के हाइफा बंदरगाह और फिर ग्रीस तक पहुँचेगी। यह गलियारा चीन के BRI का प्रतिसंतुलन बनाने के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा और ऊर्जा आपूर्ति शृंखला को मजबूती देगा।

रक्षा और प्रौद्योगिकी: सहयोग के नए आयाम

यूरोप भारत के साथ साइबर सुरक्षाकृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), और रक्षा उत्पादन में सहयोग बढ़ाने को इच्छुक है। भारत का रक्षा बजट 2024-25 में ₹6.2 लाख करोड़ तक पहुँच गया है, जिसमें से अधिकांश आयातित हथियारों पर खर्च होता है। FTA के तहत, यूरोपीय कंपनियों के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल के माध्यम से स्थानीय उत्पादन शुरू करना फायदेमंद होगा। उदाहरण के लिए, फ्रांस की Dassault Aviation पहले ही राजस्थान में राफेल विमानों के कुछ हिस्सों का निर्माण कर रही है। इससे भारत को तकनीकी हस्तांतरण और यूरोप को लागत कम करने में मदद मिलेगी।

भू-राजनीतिक संतुलन और भारत की तटस्थता

यूक्रेन संकट पर भारत की तटस्थता यूरोप के लिए आकर्षण का कारण बनी है। जहाँ अमेरिका और चीन विवादों में उलझे हैं, वहीं भारत ने “शांति और वार्ता” के अपने रुख से अंतरराष्ट्रीय विश्वास जीता है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यूक्रेन युद्ध को “युग का नहीं” बताने और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सम्मान करने की अपील ने यूरोपीय नेताओं को प्रभावित किया। साथ ही, भारत ने पश्चिम एशिया में इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाकर अपनी कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई।

एक नए युग की शुरुआत

2025 तक भारत-ईयू FTA के पूरा होने और IMEC के शुरू होने के साथ, भारत न केवल यूरोप का विश्वसनीय साथी बनेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं, डिजिटल अर्थव्यवस्था, और हरित ऊर्जा में अग्रणी भूमिका निभाएगा। यह साझेदारी द्विपक्षीय लाभ से आगे बढ़कर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव रखेगी, जहाँ भारत “विकासशील देशों की आवाज” और “पश्चिम एवं पूर्व के बीच सेतु” बनेगा। जैसे-जैसे यूरोप अमेरिका-निर्भरता से मुक्त होगा, भारत की सॉफ्ट पावर और आर्थिक गतिशीलता उसे 21वीं सदी का नेतृत्वकर्ता बनाने की राह पर अग्रसर करेगी।

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