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भारत सरकार का जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) एक नई पहल के तहत देश में प्रोटीन की कमी को दूर करने और टिकाऊ खाद्य स्रोतों को बढ़ावा देने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इसी कड़ी में, “बायो-ईथ” नामक पहल के माध्यम से प्रयोगशालाओं में “स्मार्ट प्रोटीन” के विकास पर शोध को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। यह पहल न केवल पर्यावरणीय संसाधनों के दबाव को कम करने का लक्ष्य रखती है, बल्कि पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभा सकती है। आइए, समझते हैं कि स्मार्ट प्रोटीन क्या है, यह क्यों जरूरी है, और इसके निर्माण की विभिन्न तकनीकों के साथ प्रोटीन के मूल सिद्धांतों पर भी चर्चा करते हैं।
स्मार्ट प्रोटीन को “भविष्य का प्रोटीन” कहा जा रहा है। यह पारंपरिक पशु-आधारित प्रोटीन के विकल्प के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसमें स्वाद, बनावट और पोषण मूल्य वास्तविक मांस या डेयरी उत्पादों जैसा ही होता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य प्रोटीन उत्पादन के लिए आवश्यक भूमि, पानी और ऊर्जा के उपयोग को कम करना है। साथ ही, यह भारत जैसे देश में व्याप्त प्रोटीन की कमी को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है। विशेष रूप से शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के दौर में, जहां पारंपरिक कृषि पर दबाव बढ़ रहा है, स्मार्ट प्रोटीन एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है।
स्मार्ट प्रोटीन के उत्पादन के लिए तीन मुख्य तकनीकों पर काम किया जा रहा है:
प्रोटीन हमारे शरीर की कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों के निर्माण व मरम्मत के लिए आवश्यक है। यह अमीनो एसिड की लंबी श्रृंखलाओं से बना होता है। मानव शरीर के लिए 20 अमीनो एसिड जरूरी हैं, जिनमें से 9 “आवश्यक अमीनो एसिड” शरीर द्वारा नहीं बनाए जा सकते और भोजन से प्राप्त करने होते हैं। प्रोटीन के स्रोतों को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है:
पारंपरिक रूप से प्रोटीन के स्रोतों को पशु और पादप आधारित में वर्गीकृत किया जाता है:
हालाँकि, इन स्रोतों पर निर्भरता से कृषि भूमि, पानी और ऊर्जा का अत्यधिक दोहन होता है। इसीलिए, स्मार्ट प्रोटीन जैसे नवीन विकल्पों पर जोर दिया जा रहा है।
भारत में प्रोटीन की खपत वैश्विक औसत से काफी कम है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) के अनुसार, 90% भारतीयों में प्रोटीन की कमी है। ऐसे में, स्मार्ट प्रोटीन न केवल पोषण सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, बल्कि यह किसानों के लिए नई आय के स्रोत भी खोल सकता है। उदाहरण के लिए, कीट-आधारित प्रोटीन के लिए ग्रामीण स्तर पर छोटे उद्यम स्थापित किए जा सकते हैं।