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हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें व्यभिचार की परिभाषा को लेकर महत्वपूर्ण स्पष्टता दी गई है। कोर्ट ने कहा कि किसी पत्नी का अपने पति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के प्रति प्रेम और स्नेह रखना, बिना शारीरिक संबंध के, व्यभिचार नहीं माना जाएगा। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया है जहां पति ने पत्नी को व्यभिचारी बताते हुए उसे भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने पति की इस दलील को खारिज करते हुए पत्नी को भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
यह मामला एक पति द्वारा दायर की गई पुनरीक्षण याचिका से जुड़ा था, जिसमें उसने पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार किया था। पति का दावा था कि उसकी पत्नी किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करती है, इसलिए वह उसे भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि, पत्नी ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि उसका किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई शारीरिक संबंध नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में गहन जांच की और पाया कि पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध होने का कोई सबूत नहीं है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि व्यभिचार के लिए शारीरिक संबंध होना अनिवार्य है। न्यायमूर्ति जी.एस. आहलूवालिया ने कहा कि केवल किसी अन्य व्यक्ति के प्रति प्रेम या स्नेह रखना व्यभिचार नहीं है, जब तक कि उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि पति की कम आय भरण-पोषण देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती। अगर पति शादी करने के बाद अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो यह उसकी जिम्मेदारी है, न कि पत्नी की।
कोर्ट ने इस मामले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 1445 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का हवाला दिया। इन धाराओं के तहत, पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि वह व्यभिचार में लिप्त है। चूंकि इस मामले में पत्नी के व्यभिचार का कोई सबूत नहीं था, इसलिए कोर्ट ने पति को भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी इसके गहरे प्रभाव हैं। कोर्ट ने इस फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि व्यभिचार जैसे गंभीर आरोप लगाने के लिए ठोस सबूत होना चाहिए। साथ ही, यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को मजबूती प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें भरण-पोषण से वंचित न किया जाए।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का यह फैसला व्यभिचार की परिभाषा को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है। इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिना शारीरिक संबंध के किसी अन्य व्यक्ति के प्रति प्रेम या स्नेह रखना व्यभिचार नहीं है। साथ ही, यह फैसला पति-पत्नी के बीच भरण-पोषण के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को भी स्पष्ट करता है। यह फैसला न केवल कानूनी प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि समाज में महिलाओं के अधिकारों को भी सुरक्षित करता है।
इस फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत होगी। साथ ही, यह फैसला समाज में व्यभिचार जैसे गंभीर आरोपों को लेकर जागरूकता फैलाने में भी मददगार साबित होगा।