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E-cigarettes cause cancer.

E-Cigarettes Cause Cancer: युवाओं के लिए नया खतरा और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

भारत समेत दुनिया भर में पिछले एक दशक से ई-सिगरेट (इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम) का चलन तेजी से बढ़ा है। युवाओं के बीच इसे “स्मोकिंग का सुरक्षित विकल्प” बताकर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन हालिया शोध और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके गंभीर दुष्प्रभावों की ओर इशारा कर रहे हैं। आइए, समझते हैं कि यह नई तकनीक कैसे युवा पीढ़ी को अपनी चपेट में ले रही है और इससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिम क्या हैं।

ई-सिगरेट क्या है और कैसे काम करती है?

ई-सिगरेट एक बैटरी-चालित उपकरण है, जिसमें निकोटीन युक्त तरल (ई-लिक्विड) को गर्म करके एरोसोल बनाया जाता है। इसे पीने की प्रक्रिया को “वेपिंग” कहा जाता है। पारंपरिक सिगरेट की तरह इसमें तंबाकू नहीं जलाया जाता, लेकिन ई-लिक्विड में निकोटीन के अलावा प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन, और सुगंध के लिए हानिकारक रसायन मिले होते हैं। इन्हें आकर्षक पैकेजिंग, फ्लेवर्ड ऑप्शन (जैसे मैंगो, मिंट, चॉकलेट), और स्टाइलिश डिज़ाइन के साथ बाजार में उतारा जाता है, जो विशेष रूप से किशोरों को लुभाते हैं।

युवा पीढ़ी क्यों हो रही है आकर्षित?

  1. गलत धारणा और मार्केटिंग चालें: ई-सिगरेट को “कम नुकसानदायक” बताकर प्रचारित किया जाता है। युवा इसे धूम्रपान छोड़ने का आसान तरीका समझते हैं, जबकि वास्तव में यह निकोटीन की लत को बढ़ावा देता है।
  2. सोशल मीडिया प्रभाव: इन्फ्लुएंसर्स और ऑनलाइन विज्ञापनों में ई-सिगरेट को “कूल” और “ट्रेंडी” दिखाया जाता है।
  3. कानूनी खामियाँ: कई देशों में ई-सिगरेट की बिक्री पर उम्र प्रतिबंध नहीं है। भारत में भी 2019 से पहले इस पर कोई रोक नहीं थी, जिससे किशोर आसानी से इसे खरीद लेते थे।

स्वास्थ्य पर क्या पड़ता है असर?

  1. फेफड़ों को नुकसान: वेपिंग से फेफड़ों में सूजन, पॉपकॉर्न लंग्स (ब्रोंकाइओलाइटिस), और सांस की बीमारियाँ होती हैं। ई-लिक्विड के केमिकल्स (जैसे डायसेटिल) फेफड़ों के ऊतकों को नष्ट कर देते हैं।
  2. कैंसर का खतरा: अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार, ई-सिगरेट के एरोसोल में फॉर्मल्डिहाइड और बेंजीन जैसे कार्सिनोजेन्स होते हैं, जो मुंह, गले और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकते हैं।
  3. हृदय रोग: निकोटीन रक्तचाप बढ़ाता है और धमनियों को संकीर्ण करता है, जिससे हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है।
  4. मस्तिष्क विकास में बाधा: किशोरावस्था में निकोटीन का सेवन याददाश्त, एकाग्रता और मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित करता है।

भारत सरकार का रुख और कानूनी पहल

2019 में भारत सरकार ने “ई-सिगरेट (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन) प्रतिबंध अधिनियम” लागू किया। इसके तहत ई-सिगरेट का किसी भी रूप में उपयोग या बिक्री गैरकानूनी है। उल्लंघन करने पर जुर्माना और कारावास का प्रावधान है। यह कदम युवाओं को नशे की लत से बचाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से उठाया गया।

वैश्विक स्तर पर चिंता और नीतियाँ

  • अमेरिका: 2020 में FDA ने फ्लेवर्ड ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाया, क्योंकि 85% युवा उपयोगकर्ता इन्हीं फ्लेवर के कारण आकर्षित होते हैं।
  • यूरोप: यूके में मेडिकल उपचार के लिए ई-सिगरेट की अनुमति है, लेकिन सामान्य बिक्री पर सख्त नियम हैं।
  • ब्राजील और सिंगापुर: इन देशों में ई-सिगरेट पूरी तरह प्रतिबंधित है।

क्या ई-सिगरेट सच में स्मोकिंग से कम खतरनाक है?

कुछ अध्ययन दावा करते हैं कि ई-सिगरेट में पारंपरिक सिगरेट के मुकाबले 95% कम हानिकारक तत्व होते हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इससे सहमत नहीं है। WHO के अनुसार, “कम नुकसानदायक” होने का अर्थ “सुरक्षित” नहीं है। वेपिंग से भी निकोटीन की लत लगती है और यह अन्य नशों की ओर प्रवृत्ति बढ़ाती है।


ई-सिगरेट को लेकर युवाओं में फैली भ्रांतियों को दूर करना जरूरी है। स्कूल-कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि किशोर इसके दुष्प्रभावों को समझ सकें। साथ ही, सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ई-सिगरेट के विज्ञापनों पर सख्ती बरतनी चाहिए। याद रखें, निकोटीन चाहे किसी भी रूप में हो, स्वास्थ्य के लिए घातक है। सिगरेट या वेपिंग छोड़ने के लिए डॉक्टर या काउंसलर से मदद लेना ही सुरक्षित विकल्प है।

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