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आधुनिक जीवनशैली ने हमारी दिनचर्या को सुविधाजनक बनाया है, लेकिन कुछ आदतें हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रही हैं। इन्हीं में से एक है शौचालय में मोबाइल फोन का उपयोग। यह आदत न केवल समय की बर्बादी है, बल्कि इससे गुदा संबंधी रोग जैसे बवासीर (पाइल्स), एनल फिशर, और फिस्टुला का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, ये समस्याएं आजकल तेजी से बढ़ रही हैं, और इसका प्रमुख कारण लोगों का शौचालय में अधिक समय बिताना है।
जब हम शौचालय में फोन ले जाते हैं, तो ध्यान भटकने के कारण बैठने का समय अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है। यह स्थिति मलाशय (रेक्टम) और गुदा (एनस) के आसपास की नसों पर दबाव डालती है। लगातार दबाव से नसें कमजोर होकर फूलने लगती हैं, जिससे बवासीर की शुरुआत होती है। इसके अलावा, लंबे समय तक शौचालय में बैठे रहने से कब्ज (कॉन्स्टिपेशन) की समस्या भी बढ़ती है, क्योंकि शरीर का फोकस मल त्याग पर न होकर फोन की स्क्रीन पर होता है।
बवासीर में गुदा के अंदर या बाहर की नसें सूज जाती हैं। यह दो प्रकार की होती है:
मुख्य कारण:
जब कठोर मल गुदा मार्ग से निकलते समय ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है, तो वहां छोटी दरार बन जाती है। इसमें मल त्याग के दौरान चाकू जैसा दर्द और खून आना आम है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो यह दरार गहरी होकर क्रोनिक फिशर में बदल सकती है।
फिस्टुला तब विकसित होता है, जब गुदा के पास संक्रमित गांठ (एब्सेस) फट जाती है। इससे गुदा और त्वचा के बीच एक सुरंग (ट्यूब) बन जाती है, जिसमें से लगातार पस या खून रिसता है। यह स्थिति बेहद दर्दनाक होती है और अक्सर सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
हाल के अध्ययनों के अनुसार, ईएसआईसी हॉस्पिटल जैसे स्वास्थ्य केंद्रों में हर साल बवासीर और फिशर के 500 से अधिक मामले दर्ज होते हैं। इनमें से अधिकांश रोगी वे हैं, जो शौचालय में 15-20 मिनट तक फोन का उपयोग करते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि यह आदत मनोवैज्ञानिक समस्या भी बन गई है। लोग शौचालय को एकांत का स्थान मानकर वहां समय बिताने लगते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है।
पहले बवासीर या फिस्टुला के इलाज में पारंपरिक सर्जरी की जाती थी, जो दर्दभरी और लंबे रिकवरी समय वाली प्रक्रिया थी। लेकिन अब लेजर ट्रीटमेंट और रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन जैसी तकनीकें उपलब्ध हैं, जो कम समय में और कम दर्द के साथ समस्या का समाधान करती हैं। हालांकि, डॉक्टरों का सुझाव है कि रोकथाम ही सबसे बेहतर इलाज है।