एक समय था जब ऐसा लग रहा था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में अमेरिका सबसे आगे है। ओपनएआई का चैटजीपीटी और माइक्रोसॉफ्ट के O1 जैसे मॉडल्स ने दुनिया को चौंका दिया था। लेकिन, चाइना ने हाल ही में ऐसा कदम उठाया है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया है। एक छोटी सी चाइनीज एआई स्टार्टअप कंपनी, डीपसीक ने अपने नए एआई मॉडल डीपसीक R1 के जरिए एआई की दुनिया में हलचल मचा दी है।
डीपसीक R1: क्या है खास?
डीपसीक R1 एक अत्याधुनिक रीजनिंग मॉडल है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका कॉस्ट-इफेक्टिव होना। जहां ओपनएआई का O1 हर मिलियन इनपुट टोकन पर $15 चार्ज करता है, वहीं डीपसीक R1 केवल $0.55 में वही सेवा देता है। आउटपुट टोकन के लिए भी इसका चार्ज $2.9 है, जो प्रतिस्पर्धी मॉडल्स के मुकाबले बेहद कम है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सस्ता होने के कारण कमजोर है? जवाब है, बिल्कुल नहीं! जो लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह परफॉर्मेंस के मामले में चैटजीपीटी और O1 जैसे मॉडल्स को टक्कर दे रहा है। कुछ मामलों में तो डीपसीक R1 ने इनसे बेहतर प्रदर्शन किया है।
चाइना की रणनीति:
डीपसीक R1 को बनाने वाली कंपनी डीपसीक का हेडक्वार्टर हांगझोउ में है। इस कंपनी की स्थापना लियांग वैंग फैंग ने की थी, जो झेजियांग यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट हैं। उनका मकसद ओपनएआई की तरह ऐसा एआई मॉडल बनाना था जो इंसानों की सोच और उनकी क्षमता से भी आगे हो।
डीपसीक R1 की लोकप्रियता का एक और बड़ा कारण है कि इसे मात्र दो महीने में तैयार किया गया। चाइना का यह कदम दर्शाता है कि वह एआई के क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला तक ने कहा है कि चाइना के एआई डेवलपमेंट को गंभीरता से लेना चाहिए।
उपयोग और अनुभव:
यूजर्स का अनुभव इस मॉडल के प्रति बेहद सकारात्मक रहा है। उदाहरण के लिए, जब एक यूजर ने “रोटेटिंग ट्रायंगल के अंदर रेड बॉल” बनाने का इनपुट दिया, तो चैटजीपीटी सही आउटपुट देने में असफल रहा। वहीं, डीपसीक R1 ने इसे पूरी सटीकता से पूरा किया।

भारत को सीखने की जरूरत:
चाइना ने दिखा दिया है कि छोटे स्टार्टअप्स भी बड़ी तकनीकी उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं। डीपसीक R1 जैसे मॉडल्स भारत के लिए प्रेरणा हो सकते हैं। अगर भारत को एआई की इस दौड़ में आगे बढ़ना है, तो उसे भी रिसर्च और इनोवेशन पर अधिक ध्यान देना होगा।
डीपसीक R1 के लॉन्च ने यह साबित कर दिया है कि चाइना अब केवल एआई की दौड़ में पीछे नहीं है, बल्कि अमेरिका को टक्कर देने की स्थिति में आ चुका है।