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हाल ही में एक खबर सोशल मीडिया और कई समाचार वेबसाइटों पर चर्चा का विषय बनी कि फोर्ब्स की एक नई रिपोर्ट में भारत को दुनिया के टॉप 10 सबसे शक्तिशाली देशों की सूची से बाहर कर दिया गया है। इस खबर ने भारतीय मीडिया और आम जनता के बीच बहस छेड़ दी।
लेकिन क्या यह खबर सच में वैसी ही है, जैसी दिखाई जा रही है? क्या भारत की वैश्विक शक्ति को कम आंका जा रहा है, या फिर यह एक गलतफहमी है? आइए, इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं और सच्चाई को परखते हैं।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह रिपोर्ट सीधे फोर्ब्स द्वारा प्रकाशित नहीं की गई थी। बल्कि, यह डेटा यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट (US News & World Report) की एक पुरानी लिस्ट से लिया गया था, जिसे फोर्ब्स इंडिया ने अपने आर्टिकल में संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया।
यानी, जो खबर वायरल हो रही है कि “फोर्ब्स ने भारत को टॉप 10 से बाहर कर दिया,” वह पूरी तरह सही नहीं है। बल्कि, यह यूएस न्यूज की रिपोर्ट का एक हिस्सा है, जिसे भारतीय मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया।
यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट की “पावरफुल कंट्रीज़” रैंकिंग में भारत को 12वां स्थान दिया गया था, जबकि इस लिस्ट में सऊदी अरब और साउथ कोरिया जैसे देशों को भारत से ऊपर रखा गया।
यह रैंकिंग विभिन्न मानकों के आधार पर बनाई गई थी, जिसमें शामिल थे:
इस रिपोर्ट में कुछ आंकड़े गलत भी दिखाए गए थे, जैसे रूस की जनसंख्या को चीन से अधिक बताया गया, जो स्पष्ट रूप से एक त्रुटि थी।
अगर हम वास्तविकता देखें, तो भारत दुनिया के सबसे प्रभावशाली देशों में शामिल है। 2024 में प्रकाशित ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के अनुसार, भारत दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सैन्य शक्ति है।
इसके अलावा, भारत:
✅ 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
✅ परमाणु शक्ति संपन्न देश है, जो किसी भी सैन्य रैंकिंग में अहम भूमिका निभाता है।
✅ 2023 में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर चुका है, जो उसकी कूटनीतिक ताकत को दर्शाता है।
✅ स्पेस टेक्नोलॉजी में विश्वस्तरीय प्रगति कर रहा है (चंद्रयान-3, गगनयान मिशन)।
✅ तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, जो आने वाले वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है।
भारत को अपनी वैश्विक शक्ति को किसी विदेशी रिपोर्ट या रैंकिंग से आंकने की जरूरत नहीं है। अमेरिका और यूरोप के मीडिया आउटलेट्स की रिपोर्ट्स अक्सर पश्चिमी देशों को प्राथमिकता देती हैं और कई बार इनके आधार संदेहास्पद होते हैं।
इसलिए, हमें ऐसी रिपोर्ट्स को आँख बंद करके नहीं मानना चाहिए। बल्कि, तथ्यों की गहराई में जाकर सच्चाई को समझना जरूरी है।