Companies Earn a lot but Pay LOW SALARIES: क्या कंपनियों को सैलरी बढ़ानी चाहिए?

भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, कंपनियों का मुनाफा रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुका है, लेकिन क्या इसका लाभ कर्मचारियों तक पहुंच रहा है? सरकार द्वारा प्रस्तुत हालिया आर्थिक सर्वेक्षण में इस मुद्दे पर चिंता जताई गई है। सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भारत में कंपनियों की कमाई तो बढ़ रही है, लेकिन कर्मचारियों की सैलरी उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ रही। इस स्थिति में सुधार की जरूरत है ताकि भारतीय मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति और जीवन स्तर को सुधारा जा सके।

कंपनियों का बढ़ता मुनाफा और स्थिर वेतन:

भारत की बड़ी कंपनियां हर साल रिकॉर्ड मुनाफा कमा रही हैं। यदि हम पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें, तो कंपनियों का मुनाफा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात में तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2003 में यह अनुपात मात्र 2.1% था, लेकिन 2024 तक यह बढ़कर 4.8% हो चुका है। इसके विपरीत, कर्मचारियों की सैलरी में अपेक्षित वृद्धि नहीं देखी गई। कंपनियां अधिक मुनाफा अपने पास रख रही हैं और कर्मचारियों के वेतन में सुधार करने के बजाय खर्चों में कटौती कर रही हैं।

आईटी सेक्टर में भी सैलरी स्थिर:

आईटी सेक्टर, जिसे भारत की अर्थव्यवस्था का इंजन माना जाता है, वहां भी स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। यदि हम एक दशक पहले और वर्तमान की तुलना करें, तो नए कर्मचारियों की सैलरी में बहुत मामूली वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, 10 साल पहले एक आईटी फ्रेशर को लगभग 3.4 लाख रुपये सालाना मिलते थे, जबकि अब यह आंकड़ा केवल 3.8 से 4.5 लाख रुपये तक पहुंचा है। दूसरी ओर, कंपनियों के सीईओ की सैलरी में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जो असमानता को दर्शाता है।

सरकार की चिंता और जापान का उदाहरण:

आर्थिक सर्वेक्षण में जापान के उदाहरण को भी प्रस्तुत किया गया है। वर्ल्ड वॉर II के बाद जापान में एक अनकहा सामाजिक अनुबंध बना, जहां उपभोक्ताओं ने घरेलू कंपनियों को समर्थन दिया और इसके बदले कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की भलाई का ध्यान रखा। उन्होंने वेतन बढ़ाया, उत्पादन क्षमता बढ़ाई और कर्मचारियों को बेहतर सुविधाएं प्रदान कीं। लेकिन भारत में इसका उल्टा हो रहा है। कंपनियां भारी मुनाफा तो कमा रही हैं, लेकिन कर्मचारियों के वेतन में संतोषजनक वृद्धि नहीं हो रही।

कम वेतन का असर और भविष्य की रणनीति:

निम्न वेतन दर का असर भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा पड़ता है। यदि कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ती, तो उनकी क्रय शक्ति सीमित रहती है, जिससे बाजार में मांग प्रभावित होती है। मध्यम वर्ग की वित्तीय स्थिति कमजोर होती है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास भी प्रभावित हो सकता है।

सरकार ने कंपनियों को सैलरी बढ़ाने की अपील की है, लेकिन क्या यह पर्याप्त होगा? कंपनियों को यह समझना होगा कि संतुलित वेतन नीति न केवल उनके कर्मचारियों के लिए, बल्कि उनके स्वयं के विकास के लिए भी आवश्यक है। यदि कर्मचारियों को उचित वेतन मिलेगा, तो उनकी उत्पादकता बढ़ेगी और अंततः इससे कंपनियों को भी लाभ होगा।

भारतीय कंपनियों को अब अपने कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। यदि कंपनियां अपने कर्मचारियों को उचित वेतन देंगी, तो इससे न केवल आर्थिक असमानता कम होगी, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी तेजी से आगे बढ़ेगी। इस विषय पर खुली चर्चा होनी चाहिए और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि भारत में हर कर्मचारी को उसकी मेहनत का पूरा फल मिल सके।

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