China Declares that Pakistani Travel to Space for the First Time: चीन और पाकिस्तान का अंतरिक्ष में पहला कदम

दुनिया में अंतरिक्ष अनुसंधान और अभियानों की होड़ लगातार बढ़ रही है। प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां अपने मिशनों के जरिए नई उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, भारत और चीन जैसी महाशक्तियों ने अंतरिक्ष में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। इसी कड़ी में अब चीन ने एक नई पहल की है—वह पहली बार किसी पाकिस्तानी नागरिक को अपने अंतरिक्ष स्टेशन “तियांगोंग स्पेस स्टेशन” पर भेजने की तैयारी कर रहा है।

चीन की अंतरिक्ष नीति और वैश्विक रणनीति

चीन पिछले कुछ वर्षों में अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। अमेरिका के नेतृत्व वाले “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS)” से अलग, चीन ने अपना खुद का स्पेस स्टेशन “तियांगोंग” विकसित किया है। यह चीन की अंतरिक्ष शक्ति को प्रदर्शित करने का एक माध्यम भी है।

चीन ने 2023 में घोषणा की थी कि वह विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों (Astronauts) को अपने स्पेस स्टेशन पर भेजेगा। इसका उद्देश्य यह था कि अन्य देशों के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री चीन की तकनीक को करीब से देखें और इसके अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़ें। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि चीन की इस पेशकश में किसी भी बड़े देश ने रुचि नहीं दिखाई। कई देश चीन की अंतरिक्ष तकनीक को लेकर आशंकित थे, क्योंकि चीन के पिछले कई रॉकेट लॉन्च असफल रहे हैं और सुरक्षा को लेकर भी कई सवाल उठे हैं।

पाकिस्तान को चुने जाने के पीछे की वजह

जब चीन को अन्य देशों से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, तब उसने पाकिस्तान को चुना। पाकिस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी “SUPARCO” (स्पेस एंड अपर एटमॉस्फियर रिसर्च कमिशन) भारत के इसरो (ISRO) या नासा (NASA) जैसी संस्थाओं की बराबरी नहीं कर सकी है। पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम सीमित संसाधनों और अनुभवहीनता के कारण अब तक कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया है।

पाकिस्तान को चीन के इस प्रस्ताव में सहूलियत नजर आई, क्योंकि पाकिस्तान के पास खुद से अंतरिक्ष में कोई मिशन भेजने की क्षमता नहीं है। इस तरह, यह पाकिस्तान के लिए एक अवसर था कि वह अंतरिक्ष में अपनी मौजूदगी दर्ज करा सके, भले ही यह पूरी तरह चीन के सहयोग पर आधारित हो।

2026: चीन और पाकिस्तान का अंतरिक्ष में पहला कदम

यह मिशन 2026 में लॉन्च किया जाएगा। इस साल अंतरिक्ष जगत में कई बड़े कार्यक्रम होने वाले हैं, जिनमें भारत और अमेरिका का साझा मिशन “Axiom-4” प्रमुख है। इस मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन” पर भेजे जाएंगे। भारत के इस कदम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अमेरिका के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी।

ऐसे में, चीन ने एक रणनीतिक चाल चली और 2026 में ही पाकिस्तानी अंतरिक्ष यात्रियों को अपने स्पेस स्टेशन पर भेजने का निर्णय लिया। इससे वह यह दिखाना चाहता है कि वह भी एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति है और अन्य देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को अपने साथ जोड़ सकता है।

चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि, इस मिशन को लेकर कई चुनौतियां भी हैं—

  1. अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण – पाकिस्तान के पास खुद के प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री नहीं हैं। चीन इन्हें एक साल तक ट्रेनिंग देगा, लेकिन इतने कम समय में उन्हें तैयार करना चुनौतीपूर्ण होगा।
  2. तकनीकी विश्वसनीयता – चीन के कई रॉकेट असफल हो चुके हैं। ऐसे में, अंतरिक्ष यात्रा के दौरान सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा हो सकता है।
  3. वैश्विक प्रभाव – अमेरिका, भारत और यूरोपीय देश इस मिशन को लेकर सतर्क नजर रखेंगे। यह देखने वाली बात होगी कि क्या यह चीन की अंतरिक्ष शक्ति को साबित कर पाएगा या सिर्फ एक प्रचार अभियान बनकर रह जाएगा।

चीन और पाकिस्तान के इस संयुक्त अंतरिक्ष मिशन से स्पष्ट है कि अंतरिक्ष अब सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धियों का मंच नहीं रहा, बल्कि यह कूटनीतिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका है। जहां भारत, अमेरिका और अन्य देश तकनीकी आत्मनिर्भरता और नवाचार पर जोर दे रहे हैं, वहीं चीन अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।

2026 में जब यह मिशन पूरा होगा, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन और पाकिस्तान इस उपलब्धि का कैसे उपयोग करते हैं और यह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष राजनीति को कैसे प्रभावित करता है। 🚀

Leave a Comment