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CAG रिपोर्ट में खुआ खुलासा सरकारी कंपनी BSNL ने jio से नहीं बसूले 10 वर्षों के लगभग ₹1,800 करोड़ रुपये

CAG report reveals that government company BSNL did not recover ₹1,800 crore from Jio

CAG report reveals that government company BSNL did not recover ₹1,800 crore from Jio

भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में शासन और प्रबंधन की चुनौतियों को एक बार फिर केंद्र में लाने वाली हालिया CAG (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट ने BSNL के संदर्भ में गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, BSNL ने रिलायंस जियो से पिछले 10 वर्षों में लगभग ₹1,800 करोड़ रुपये वसूलने में विफलता दिखाई, जो न केवल वित्तीय लापरवाही का उदाहरण है बल्कि सार्वजनिक संसाधनों के प्रबंधन में गहरी संरचनात्मक कमियों को भी उजागर करता है4। यह मामला केवल एक कंपनी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकारी उपक्रमों में पारदर्शिता और जवाबदेही के व्यापक संकट की ओर इशारा करता है।

पृष्ठभूमि: BSNL और जियो के बीच समझौते का सार

2014 में BSNL और रिलायंस जियो के बीच हुए मास्टर सर्विस एग्रीमेंट (MSA) के तहत जियो को BSNL के टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर—जैसे टावर, बिल्डिंग स्पेस, पावर सप्लाई, और केबल नेटवर्क—का उपयोग करने की अनुमति मिली। यह समझौता सामान्य व्यावसायिक प्रथा के अनुरूप था, जहां एक कंपनी दूसरे के बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके सेवाएँ प्रदान करती है। समस्या तब शुरू हुई जब BSNL ने इस उपयोग के लिए जियो को नियमित बिल जारी करने में लापरवाही बरती। CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, BSNL ने 2014 से 2024 तक के दशक में जियो के खिलाफ कोई भी इनवॉइस जनरेट नहीं किया, जिसके कारण कंपनी को ₹1,757 करोड़ का सीधा नुकसान हुआ। इसके अलावा, समझौते में निर्धारित एस्केलेशन क्लॉज (हर साल शुल्क में वृद्धि) का पालन न करने से ₹29 करोड़ और अन्य भुगतान संबंधी त्रुटियों से ₹38 करोड़ का अतिरिक्त नुकसान हुआ। कुल मिलाकर, यह रकम ₹1,824 करोड़ तक पहुँचती है, जो BSNL के वित्तीय संकट को गहरा करने वाला एक बड़ा कारक है।

प्रबंधन की विफलताएँ: कागजी कार्रवाई से परे

CAG ने इस मामले को “आंतरिक गलत प्रबंधन” बताया है। हैरानी की बात यह है कि BSNL के पास यह रिकॉर्ड तक नहीं था कि जियो ने उसके इंफ्रास्ट्रक्चर का कितना उपयोग किया। इसका मतलब है कि नुकसान का आँकड़ा भी अनुमानित है, जो BSNL की लेखा प्रणाली की गंभीर खामियों को दर्शाता है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है: क्या एक सरकारी कंपनी में इतनी बड़ी वित्तीय लापरवाही बिना किसी जानबूझकर की गई कार्रवाई के संभव है? CAG ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक लेखांकन त्रुटि नहीं, बल्कि संसाधनों के दुरुपयोग और निगरानी तंत्र की पूर्ण अनुपस्थिति का मामला है।

BSNL का संकट: केवल जियो से जुड़ा मामला नहीं

यह घटना BSNL के स्थायी संकट का एक छोटा हिस्सा भर है। कंपनी पिछले दो दशकों से लगातार घाटे में चल रही है। 2022-23 के वित्तीय वर्ष में इसका घाटा ₹8,000 करोड़ से अधिक रहा, जबकि कुल संचित घाटा ₹1.1 लाख करोड़ को पार कर चुका है। इसके पीछे कई संरचनात्मक कारण हैं:

  1. कर्मचारी व्यय का बोझ: BSNL का 70% राजस्व सिर्फ वेतन और पेंशन में खर्च हो जाता है, जबकि निजी कंपनियों में यह खर्च 5-15% से अधिक नहीं होता।
  2. पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर: ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कॉपर-आधारित नेटवर्क का उपयोग हो रहा है, जबकि निजी कंपनियाँ ऑप्टिकल फाइबर और 5G तक पहुँच चुकी हैं।
  3. प्रौद्योगिकी में पिछड़ापन: BSNL का पैन-इंडिया 4G नेटवर्क अभी तक पूरी तरह सक्रिय नहीं हुआ है, जबकि बाजार में 5G की होड़ शुरू हो चुकी है।

सरकार ने BSNL को बचाने के लिए 2019 से अब तक ₹3 लाख करोड़ से अधिक के बेलआउट पैकेज दिए हैं, जिसमें 2022 का ₹1.64 लाख करोड़ का पैकेज भी शामिल है। लेकिन यह सहायता रणनीतिक सुधारों के बिना केवल एक अस्थायी प्लास्टर की तरह साबित हो रही है।

सार्वजनिक हित बनाम निजी लाभ: व्यापक प्रभाव

इस मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि सार्वजनिक संसाधनों का लाभ एक निजी कंपनी को मिला, जबकि नुकसान टैक्सदाताओं को उठाना पड़ा। यह स्थिति प्रतिस्पर्धा के सिद्धांत के विपरीत है, क्योंकि जियो को अप्रत्यक्ष रूप से सब्सिडी मिली, जबकि अन्य टेलीकॉम कंपनियाँ (जैसे एयरटेल या वोडाफोन आइडिया) इस लाभ से वंचित रहीं। इससे न केवल बाजार का संतुलन बिगड़ता है बल्कि सरकारी नीतियों पर पक्षपात के सवाल भी उठते हैं।

सुधार की राह: क्या हो सकता है समाधान?

  1. जवाबदेही तय करना: इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और पारदर्शी जाँच की आवश्यकता है।
  2. डिजिटल निगरानी: इंफ्रास्ट्रक्चर के उपयोग का रियल-टाइम डेटा एकत्रित करने और स्वचालित बिलिंग प्रणाली लागू करने से भविष्य में ऐसी त्रुटियों को रोका जा सकता है।
  3. रणनीतिक निवेश: BSNL को 4G/5G तकनीक और ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क में निवेश करके प्रतिस्पर्धी बनाना होगा।
  4. कार्यबल का पुनर्गठन: स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं को और प्रभावी ढंग से लागू करके वेतन व्यय को कम किया जा सकता है।

सबक और भविष्य की दिशा

BSNL-जियो मामला केवल एक वित्तीय विवाद नहीं, बल्कि भारत के सार्वजनिक उपक्रमों में व्याप्त प्रबंधनिक अक्षमता का प्रतीक है। CAG की रिपोर्ट एक चेतावनी है कि बिना सुधारों के सरकारी कंपनियाँ न केवल आर्थिक बोझ बनी रहेंगी, बल्कि उनके संसाधनों का दुरुपयोग भी होता रहेगा। आवश्यकता इस बात की है कि BSNL जैसे संस्थानों को केवल बेलआउट देने के बजाय उन्हें पेशेवर प्रबंधन, तकनीकी उन्नयन, और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर पुनर्गठित किया जाए। यही वह मार्ग है जो सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए राष्ट्रीय हितों की सेवा कर सकता है।

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