अमेरिका ने हाल ही में 41 देशों की एक सूची जारी की है, जिनके नागरिकों को अमेरिका में प्रवेश या वहां की उड़ानों में यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस कदम ने दुनियाभर में चर्चा छेड़ दी है, खासकर इसलिए क्योंकि इनमें से अधिकांश देश मुस्लिम बहुल हैं। परंतु, क्या यह प्रतिबंध सिर्फ धर्म के आधार पर है? क्या प्रभावित देशों के नागरिकों को अमेरिका छोड़ना पड़ेगा? आइए, इसके पीछे के कारणों और प्रभावों को समझते हैं।
प्रतिबंध की पृष्ठभूमि: ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति
यह कदम पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति की एक विस्तारित कड़ी है। ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के खतरे को ध्यान में रखते हुए इन देशों को चिह्नित किया है। 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति पद संभालने के तुरंत बाद, ट्रंप ने स्टेट डिपार्टमेंट को एक आदेश जारी किया, जिसका उद्देश्य “अमेरिका को विदेशी आतंकवादियों और सुरक्षा खतरों से बचाना” था। इसके तहत, उन देशों की पहचान की गई, जहां से अमेरिका को साइबर हमले, आतंकी गतिविधियों, या अवैध प्रवास का खतरा हो सकता है।
तीन श्रेणियों में बंटे प्रतिबंध
अमेरिका ने प्रतिबंधित देशों को तीन श्रेणियों में बाँटा है: रेड, ऑरेंज, और येलो लिस्ट। प्रत्येक श्रेणी के नियम अलग-अलग हैं:
- रेड लिस्ट (11 देश): इन देशों के नागरिकों को किसी भी स्थिति में अमेरिका में प्रवेश की अनुमति नहीं है। इनमें अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, उत्तर कोरिया, वेनेजुएला, और भूटान जैसे देश शामिल हैं। हैरानी की बात यह है कि भूटान एक बौद्ध बहुल देश है, जो आमतौर पर शांतिपूर्ण माना जाता है। संभवतः, चीन के साथ सीमा विवाद या दस्तावेज़ीकरण में कमियों के कारण इसे इस सूची में रखा गया हो।
- ऑरेंज लिस्ट (10 देश): इन देशों के नागरिकों के लिए वीजा प्रक्रिया अत्यंत कठिन कर दी गई है। इनमें पाकिस्तान, रूस, बेलारूस, और म्यांमार जैसे देश हैं। यहाँ के आवेदकों को कड़ी पृष्ठभूमि जाँच और विस्तृत दस्तावेज़ीकरण से गुजरना पड़ेगा। पर्यटक वीजा लगभग बंद हो गए हैं, केवल व्यापारिक या डिप्लोमैटिक वीजा ही संभव हैं।
- येलो लिस्ट (22 देश): इन देशों को 60 दिनों का समय दिया गया है ताकि वे अपने पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया और सुरक्षा प्रोटोकॉल सुधार सकें। इसमें अंगोला, कंबोडिया, और ज़िम्बाब्वे जैसे देश शामिल हैं। यदि ये सुधार नहीं होते, तो इन्हें रेड या ऑरेंज लिस्ट में डाल दिया जाएगा।
क्या यह सिर्फ मुस्लिम देशों पर प्रतिबंध है?
प्रारंभ में, ट्रंप के 2017 के यात्रा प्रतिबंध को “मुस्लिम बैन” कहा गया था, क्योंकि उस समय चुने गए 6 में से 5 देश मुस्लिम बहुल थे। हालाँकि, नई सूची में विविधता है। उदाहरण के लिए, भूटान (बौद्ध), क्यूबा (ईसाई), और वेनेजुएला (ईसाई) जैसे देश भी शामिल हैं। इससे स्पष्ट है कि प्रतिबंध का आधार धर्म नहीं, बल्कि सुरक्षा चिंताएँ हैं। अमेरिका का दावा है कि इन देशों में पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया लचीली है, जिससे आतंकी या अवैध प्रवासी अमेरिका पहुँच सकते हैं।
भूटान और वेनेजुएला: हैरान करने वाले नाम
भूटान का इस सूची में होना आश्चर्यजनक है, क्योंकि यह दक्षिण एशिया का एक छोटा, शांतिप्रिय देश है। विशेषज्ञों के अनुसार, संभवतः चीन के साथ सीमा विवादों के कारण भूटान को लेकर अमेरिका को सतर्कता बरतनी पड़ रही है। वहीं, वेनेजुएला को ड्रग ट्रैफिकिंग और अवैध हथियारों के कारण रेड लिस्ट में रखा गया है, भले ही अमेरिका ने हाल के वर्षों में वहाँ की सरकार के साथ संबंध सुधारे हैं।
क्या प्रभावित देशों के नागरिकों को अमेरिका छोड़ना पड़ेगा?
अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि यह प्रतिबंध केवल नए वीजा आवेदनों पर लागू होगा। जो लोग पहले से अमेरिका में रह रहे हैं, उन्हें देश छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते उनके दस्तावेज़ वैध हों। हालाँकि, यदि उनका वीजा समाप्त होता है, तो नवीनीकरण मुश्किल हो सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और भविष्य
इस कदम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री को हाल ही में वैध वीजा होने के बावजूद अमेरिका में प्रवेश नहीं दिया गया, जिससे तनाव बढ़ा है। वहीं, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ट्रंप के पिछले प्रतिबंध को आंशिक रूप से रोक दिया था, लेकिन अब यह नई सूची अधिक विस्तृत और व्यवस्थित है।
सुरक्षा बनाम वैश्विक संबंध
ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं। प्रतिबंधित देशों के साथ व्यापार और राजनयिक संपर्क में कमी आएगी, जो अमेरिका की वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुँचा सकती है। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह नीति आतंकवाद के खतरे को कम कर पाती है, या फिर यह केवल एक राजनीतिक चाल साबित होती है।
इस प्रकार, अमेरिका का यह निर्णय न सिर्फ उसकी आंतरिक नीतियों, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति को भी प्रभावित करेगा। जैसे-जैसे स्थिति विकसित होगी, दुनिया की नजरें अमेरिका और प्रतिबंधित देशों के अगले कदमों पर टिकी रहेंगी