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पिछले कुछ दशकों से अफ्रीका महाद्वीप बार-बार अज्ञात और घातक बीमारियों के प्रकोप का सामना कर रहा है। इनमें से अधिकांश रोग जूनोटिक (पशुजनित) श्रेणी में आते हैं, यानी वे बीमारियाँ जो जानवरों से मनुष्यों में फैलती हैं। हाल ही में, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के बोलोको गाँव में एक रहस्यमय बीमारी ने दस्तक दी है, जिसने अब तक 50 से अधिक लोगों की जान ले ली है और 419 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। यह बीमारी अपने तेज़ प्रसार और घातक लक्षणों के कारण चिंता का विषय बनी हुई है। स्वास्थ्य अधिकारी और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसकी पहचान और नियंत्रण में जुटे हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया है।
इस बीमारी की सबसे खतरनाक विशेषता है रफ्तार। संक्रमित व्यक्ति में लक्षण दिखने के 24 से 48 घंटे के भीतर ही मृत्यु हो जाती है। प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
ये लक्षण इबोला या मार्बर्ग वायरस जैसे हेमोरेजिक फीवर से मिलते-जुलते हैं, जो अफ्रीका में पहले भी महामारियाँ फैला चुके हैं। हालाँकि, प्रारंभिक जाँच में इस बीमारी का कोई ज्ञात वायरस या बैक्टीरिया नहीं पाया गया है।
इस बीमारी की शुरुआत 21 जनवरी 2023 को तब हुई जब बोलोको गाँव के तीन बच्चों ने चमगादड़ का मांस खाया। अगले दिन ही उनमें गंभीर लक्षण उभरे और 48 घंटे के भीतर उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद से यह बीमारी तेज़ी से फैलने लगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह चमगादड़ से मनुष्यों में फैली हो सकती है, क्योंकि ये जानवर कई घातक वायरसों के प्राकृतिक वाहक होते हैं, जैसे—निपाह, इबोला, और कोविड-19 (SARS-CoV-2 के बारे में कुछ परिकल्पनाएँ)।
हालाँकि, अभी तक यह पुष्टि नहीं हुई है कि यह बीमारी किसी नए वायरस के कारण फैल रही है या फिर किसी ज्ञात रोग का म्यूटेड रूप है। संदिग्ध मामलों के नमूनों को जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए प्रयोगशालाओं में भेजा गया है।
अफ्रीका में जंगली जानवरों का मांस (बुशमीट) खाने की परंपरा और प्राकृतिक संसाधनों के निकट संपर्क के कारण जूनोटिक रोगों का खतरा अधिक है। पिछले कुछ वर्षों में यहाँ कई बीमारियाँ उभरी हैं:
इन बीमारियों के फैलने के पीछे मुख्य कारण हैं: वनों का कटाव, जंगली जानवरों से मानव का बढ़ता संपर्क, और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव।
स्वास्थ्य अधिकारी निम्न उपायों पर जोर दे रहे हैं:
हालाँकि, इन उपायों को लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं:
इस बीमारी ने एक बार फिर वैश्विक स्वास्थ्य निगरानी के महत्व को उजागर किया है। WHO ने कांगो में अपनी टीमें तैनात की हैं और Global Outbreak Alert and Response Network (GOARN) के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया है। इसके अलावा, CEPI (Coalition for Epidemic Preparedness Innovations) जैसे संगठन नए टीकों के शोध में जुटे हैं।
कांगो की यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन और वनों के विनाश के कारण मनुष्य और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ रहा है, जिससे नए रोगों का खतरा बना हुआ है। भविष्य में ऐसे प्रकोपों से निपटने के लिए निम्न कदम आवश्यक हैं:
अफ्रीका की यह रहस्यमय बीमारी न केवल एक देश बल्कि पूरी मानवता के लिए चेतावनी है कि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलें, वरना भविष्य में और भी घातक महामारियाँ हमारी प्रतीक्षा में हो सकती हैं।