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भारतीय लोकतंत्र की गहराइयों में छिपे एक कड़वे सच से आज फिर सामना होता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ताज़ा रिपोर्ट ने देश के विधायकों और मुख्यमंत्रियों के चेहरे पर लगे ‘जनसेवक’ के मुखौटे को एक बार फिर उतार दिया है। यह रिपोर्ट न सिर्फ अपराध और राजनीति के गठजोड़ को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे सार्वजनिक जीवन में बैठे लोगों की संपत्ति आम आदमी की कमाई से कई गुना अधिक है। आइए, इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों को समझते हैं।
एडीआर ने देश के 28 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों के 4,092 विधायकों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण किया है। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 1,861 विधायकों (45%) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 1,205 विधायक ऐसे हैं जिन पर हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप लगे हैं।
राजनीतिक दल चुनावी रैलियों में महिला सुरक्षा और नैतिक शासन का ढोल पीटते हैं, लेकिन उनकी अपनी पार्टियों में ऐसे नेता शामिल हैं जिन पर बलात्कार जैसे जघन्य आरोप लगे हैं। सवाल यह है कि जनता ऐसे उम्मीदवारों को वोट क्यों देती है? क्या यह सिर्फ पैसे, शराब या सामुदायिक समीकरण का खेल है? रिपोर्ट बताती है कि अपराधी छवि वाले नेताओं का चुनाव जीतना इस बात का संकेत है कि समाज में कानून के प्रति सम्मान घट रहा है।
एडीआर रिपोर्ट ने मुख्यमंत्रियों की संपत्ति का भी ब्योरा दिया है। देश के 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की औसत संपत्ति 5.59 करोड़ रुपये है, जो भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय (85,854 रुपये) से करीब 650 गुना अधिक है!
चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से मिले चंदे का विवरण भी इस रिपोर्ट में शामिल है। वित्त वर्ष 2022-23 में भाजपा को 4,340 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जो कुल चंदे का 74.5% है। कांग्रेस को 252 करोड़ रुपये मिले, जबकि उसने 1,025 करोड़ रुपये खर्च किए। दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने 22 करोड़ रुपये का चंदा इकट्ठा किया, लेकिन 34 करोड़ रुपये खर्च कर दिए।
एडीआर रिपोर्ट एक आईना है, जो भारतीय लोकतंत्र की कमजोरियों को बेबाकी से दिखाती है। जब तक जनता जागरूक नहीं होगी और अपराधी छवि वाले नेताओं को वोट देना बंद नहीं करेगी, तब तक सिस्टम में सुधार की उम्मीद बेमानी है। युवाओं को इस मामले में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। चुनावी वादों की चकाचौंध में न आकर, उम्मीदवारों के चरित्र और रिकॉर्ड को परखना होगा।
अंत में, यह सवाल महत्वपूर्ण है: क्या हम वाकई उस लोकतंत्र के हकदार हैं, जिसमें अपराधी विधायक जनता का प्रतिनिधित्व करें? जवाब आपके हाथ में है।