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अबू कतल, जिसका वास्तविक नाम जिया उर रहमान था, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का प्रमुख सदस्य और हाफिज सईद का विश्वासपात्र था। वह भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रहा और कई घटनाओं में उसकी भूमिका थी। 9 महीने पहले जम्मू-कश्मीर के रायसी जिले में हिंदू तीर्थयात्रियों पर हुए हमले की योजना भी उसी ने बनाई थी। इस हमले के बाद इजराइल ने भारत का समर्थन किया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस घटना को उचित ध्यान नहीं दिया।
अबू कतल की हत्या पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के झेलम क्षेत्र में हुई। अज्ञात बंदूकधारियों ने उस पर 20 से अधिक गोलियाँ चलाकर उसे मार डाला। यह घटना उन “अनजान लोगों” की शृंखला का हिस्सा लगती है, जो पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों को निशाना बना रहे हैं। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पहले ही चेतावनी दी थी कि भारत पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों को “खत्म” कर सकता है। हालाँकि, भारत सरकार ने इन आरोपों को हमेशा खारिज किया है।
पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद के मामले में दोहरी नीति अपनाता आया है। अमेरिका जैसे देशों के दबाव में आकर वह कभी-कभी आतंकियों को सौंप देता है, लेकिन अपने घरेलू संगठनों को संरक्षण देता रहा है। अफगानिस्तान के मीडिया ने भी पाकिस्तान के इस “डबल गेम” की ओर इशारा किया है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान ने हाल ही में एक आतंकवादी को अमेरिका को सौंपा, जिसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने उसकी प्रशंसा की। यह कदम पाकिस्तान की छवि सुधारने की कोशिश लगती है, जबकि उसके भीतर आतंक के नेटवर्क सक्रिय हैं।
भारत के लिए अबू कतल का अंत एक बड़ी राहत है। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) की वेबसाइट पर उसे “सबसे वांछित” आतंकवादियों की सूची में शामिल किया गया था। उसकी मौत से भारत की सुरक्षा एजेंसियों को मनोबल मिला है। यह घटना उस नीति का परिणाम हो सकती है, जिसमें भारत सीमा पार से आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सख्त कदम उठा रहा है। हालाँकि, भारत आधिकारिक तौर पर किसी भी एक्टिविस्ट की हत्या की जिम्मेदारी नहीं लेता, लेकिन यह स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने और घरेलू सुरक्षा को मजबूत करने की रणनीति काम कर रही है।