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दिल्ली एनसीआर क्षेत्र इन दिनों एक नए स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। फरवरी 2025 से यहाँ वायरल संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जिसमें कोविड-19 जैसे लक्षण वाला एक गंभीर फ्लू तेजी से फैल रहा है। स्थानीय अस्पतालों में बुखार, खांसी, बदन दर्द और लंबे समय तक थकान की शिकायत लेकर आने वाले मरीजों की संख्या में अचानक उछाल देखा गया है। लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक, एनसीआर के 54% घरों में कम से कम एक व्यक्ति इस फ्लू की चपेट में है। यह आंकड़ा न केवल चिंता बढ़ाने वाला है, बल्कि यह स्वास्थ्य व्यवस्था पर गहराते दबाव का भी संकेत देता है।
आमतौर पर मौसम बदलने पर फ्लू के मामले बढ़ते हैं, लेकिन इस बार स्थिति अलग है। इस फ्लू की तीव्रता और फैलाव दोनों ही सामान्य से कहीं अधिक हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और गाजियाबाद में 13,000 से अधिक लोगों पर किए गए सर्वे में 63% पुरुष और 37% महिलाएं संक्रमण का शिकार पाए गए। विशेषज्ञ इसकी वजह किसी नए वायरल स्ट्रेन, प्रदूषण या मौसम परिवर्तन को मान रहे हैं।
सामान्य फ्लू के लक्षण 5-7 दिनों में ठीक हो जाते हैं, लेकिन इस बार मरीज 10 दिनों तक भी परेशानी झेल रहे हैं। कुछ मामलों में ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, दस्त और मितली जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं भी सामने आई हैं। यही नहीं, 9% घरों में चार या अधिक सदस्य बीमार पड़े हैं, जबकि 45% परिवारों में दो से तीन लोग संक्रमण की चपेट में हैं। अगस्त 2024 की तुलना में फरवरी 2025 में मामलों में 16% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
इस फ्लू ने बुजुर्गों (50+ वर्ष), शिशुओं, पहले से बीमार लोगों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इन समूहों में संक्रमण की अवधि लंबी होने के साथ-साथ अस्पताल में भर्ती होने की दर भी अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी के दौरान सीमित सामाजिक संपर्क के कारण लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई है, जिससे वायरस तेजी से फैल रहा है।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को दीर्घकालिक नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है, जैसे औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा और हरित क्षेत्रों का विस्तार। साथ ही, नागरिकों को भी अपनी आदतों में सुधार करना होगा—जैसे पटाखों का उपयोग कम करना, कारपूलिंग अपनाना और प्लास्टिक जलाने से बचना।