भारत के विभिन्न राज्यों में बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर तीव्र विरोध और हड़तालों का दौर चल रहा है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस नीति के पीछे घाटे में चल रहे बिजली वितरण क्षेत्र को सुधारने और राजस्व बढ़ाने का तर्क दिया जा रहा है। वहीं, बिजली कर्मचारियों के संगठन, ट्रेड यूनियनें, और आम नागरिक इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। यह विवाद केवल नौकरियों की सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक पहलू भी गहन बहस का विषय बने हुए हैं।
निजीकरण का सरकारी तर्क: “घाटे और अक्षमता से मुक्ति”
सरकार के अनुसार, बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का बढ़ता वित्तीय घाटा और ढांचागत अक्षमता निजीकरण की मुख्य वजह है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली राजस्व का बकाया 75,000 करोड़ रुपये से अधिक बताया जा रहा है, जबकि वार्षिक घाटा लगभग 15,000 करोड़ रुपये है। सरकार का मानना है कि निजी कंपनियां तकनीकी नवाचार, बिल संग्रह दर में सुधार, और बेहतर प्रबंधन के जरिए इस संकट को हल कर सकती हैं। साथ ही, उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं मिलने और बिजली चोरी रोकने की उम्मीद भी जताई जा रही है।
विरोध के मुख्य कारण: नौकरियां, पेंशन, और आम जनता पर बोझ
- रोजगार की अनिश्चितता:
बिजली विभाग में कार्यरत लाखों कर्मचारियों को आशंका है कि निजीकरण के बाद उनकी नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी। सरकारी विभागों में स्थायी पदों की जगह निजी क्षेत्र में ठेके आधारित नियुक्तियां होंगी, जिससे नौकरी की सुरक्षा समाप्त हो जाएगी। पेंशन और अन्य लाभों के हस्तांतरण को लेकर भी अस्पष्टता बनी हुई है। - उपभोक्ताओं पर महंगाई का खतरा:
मुंबई जैसे शहरों में निजी कंपनियों द्वारा घरेलू उपभोक्ताओं से 10-12 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली बिल वसूलने का उदाहरण दिया जा रहा है। आशंका है कि निजीकरण के बाद टैरिफ में वृद्धि होगी, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ेगा। किसानों को मिलने वाली सब्सिडी भी खत्म हो सकती है। - भ्रष्टाचार और पारदर्शिता का संकट:
आलोचकों का मानना है कि निजी कंपनियां लाभ कमाने के चक्कर में बिजली वितरण के मौजूदा भ्रष्टाचार को और बढ़ाएंगी। उदाहरण के लिए, राजनीतिक हस्तियों और नौकरशाहों को मुफ्त या रियायती बिजली देने की परंपरा पर अंकुश लगाने के बजाय, निजीकरण से यह समस्या और गहरा सकती है। - सार्वजनिक संपत्ति का हस्तांतरण:
बिजली विभाग की संपत्तियों (जैसे ट्रांसफॉर्मर, ग्रिड, भूमि) को निजी हाथों में सौंपे जाने को “राष्ट्रीय संपदा की बिक्री” बताया जा रहा है। कर्मचारी संघों का दावा है कि यदि बकाया राजस्व की ठीक से वसूली की जाए और चोरी रोकी जाए, तो डिस्कॉम घाटे से उबर सकते हैं।
राज्यवार स्थिति: उत्तर प्रदेश और चंडीगढ़ में जोरदार विरोध
- उत्तर प्रदेश: निजीकरण की प्रक्रिया सबसे तेज यहीं चल रही है। राज्य सरकार ने बिजली वितरण का ठेका निजी कंपनियों को देने के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की है। इसके विरोध में मार्च 2023 में चार बड़ी रैलियां आयोजित की गईं, और मई में देशव्यापी हड़ताल की योजना है। यूपी बिजली कर्मचारी संघ के नेता महेंद्र राय का कहना है कि सरकार कर्मचारियों से बिना संवाद किए जल्दबाजी में फैसले ले रही है।
- चंडीगढ़: यहां के बिजली विभाग के कर्मचारियों ने स्पष्ट घोषणा की है कि वे निजीकरण को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। उनका तर्क है कि चंडीगढ़ में बिजली आपूर्ति पहले से ही कुशल है, और निजीकरण से केवल उपभोक्ताओं का शोषण होगा।
सरकार और विरोधियों के बीच तकरार: क्या है समाधान का रास्ता?
बिजली कर्मचारियों का मानना है कि सरकारी विभागों में सुधार के लिए निजीकरण ही एकमात्र विकल्प नहीं है। उनके प्रस्तावों में शामिल है:
- बकाया वसूली में सख्ती: राजनीतिक दबाव में माफ किए गए बिलों और VIP संस्कृति को समाप्त करना।
- तकनीकी उन्नयन: स्मार्ट मीटर, ऊर्जा संरक्षण तकनीक, और डिजिटल भुगतान प्रणालियों को बढ़ावा देना।
- पारदर्शिता: भ्रष्टाचार रोकने के लिए ऑडिट और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना।
वहीं, सरकार का तर्क है कि निजी क्षेत्र की दक्षता और निवेश से बिजली क्षेत्र को मजबूती मिलेगी। हालांकि, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सार्वजनिक डिस्कॉम के सफल संचालन के उदाहरण भी मौजूद हैं, जो सरकारी प्रबंधन की क्षमता को रेखांकित करते हैं।
बिजली न केवल एक बुनियादी सेवा है, बल्कि रोजगार, उद्योग, और कृषि की रीढ़ भी है। ऐसे में, निजीकरण की प्रक्रिया में लाखों कर्मचारियों की आजीविका और आम जनता की सामर्थ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह हड़ताली कर्मचारियों और नागरिक संगठनों के साथ खुलकर संवाद करे, ताकि घाटे को कम करने और सेवा सुधार के बीच संतुलन बनाया जा सके। साथ ही, निजी कंपनियों के लिए सख्त नियामक ढांचा बनाना और टैरिफ नियंत्रण जैसे उपाय भी जरूरी हैं। अंततः, लक्ष्य बिजली क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ जनहित को सर्वोपरि रखना होना चाहिए।