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मध्य पूर्व एक बार फिर वैश्विक चिंताओं का केंद्र बन गया है। ईरान और इजराइल के बीच हाल के धमकी-प्रत्युत्तरों ने इस क्षेत्र में युद्ध के बादल मंडराने शुरू कर दिए हैं। दोनों देशों के बीच तनाव का यह दौर नया नहीं है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में हुए घटनाक्रमों ने इसे और अधिक विस्फोटक बना दिया है। आइए, इस संघर्ष की जड़ों, वर्तमान स्थिति और संभावित परिणामों को समझने का प्रयास करें।
ईरान और इजराइल के बीच शत्रुता का इतिहास 1979 के ईरानी इस्लामिक क्रांति से जुड़ा है। इससे पहले, ईरान (तब फारस) और इजराइल के संबंध सामान्य थे। लेकिन क्रांति के बाद ईरान ने इजराइल को “अवैध राज्य” घोषित कर दिया और फिलिस्तीनियों के समर्थन में सक्रिय भूमिका निभाने लगा। ईरान की इस नीति का प्रतिबिंब उसकी प्रॉक्सी गुटों (हिज़बुल्लाह, हमास, यमन के हूथी) के माध्यम से इजराइल विरोधी गतिविधियों में देखा जा सकता है। वहीं, इजराइल ने भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
पिछले वर्ष (2023) अप्रैल और अक्टूबर में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर मिसाइल हमले किए। इन्हें “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 1” और “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 2” नाम दिया गया। ईरान ने दावा किया कि उसके 90% मिसाइल इजराइल के लक्ष्यों को भेदने में सफल रहे, जबकि इजराइल ने अपने आयरन डोम डिफेंस सिस्टम की क्षमता पर जोर दिया। अब, ईरानी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के जनरल इब्राहिम जब्बारी ने “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3” की घोषणा करते हुए इजराइल के प्रमुख शहरों (जैसे तेल अवीव और हाइफा) को “तबाह” करने की धमकी दी है। इजराइल ने इसका जवाब “हम तैयार हैं” कहकर दिया है।
ईरान ने हाल ही में अपनी मिसाइल क्षमता को बढ़ाने के लिए चीन से 1,000 टन रॉकेट ईंधन आयात किया है। सैटेलाइट छवियों से पता चला है कि ईरान ने एक अंडरग्राउंड मिसाइल सिटी का निर्माण किया है, जहां बड़ी संख्या में मिसाइलें तैनात हैं। यह सुविधा युद्धकाल में अमेरिका या इजराइली हमलों से बचाव और प्रतिकार करने के लिए डिज़ाइन की गई है। IRGC के कमांडरों ने दावा किया है कि उनके पास हाइपरसोनिक मिसाइलें हैं, जो इजराइल की वायु रक्षा प्रणाली को चुनौती दे सकती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान कुछ हफ्तों में हथियार-ग्रेड यूरेनियम का उत्पादन शुरू कर सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए, इजराइल और अमेरिका के बीच ईरानी परमाणु सुविधाओं पर संयुक्त हमले की योजना चर्चा में है। सीआईए के पूर्व अधिकारी कॉलिन विंस्टन के अनुसार, “ईरान की प्रॉक्सी गुट (हिज़बुल्लाह, हमास) वर्तमान में कमजोर हैं, इसलिए यह हमला करने का सही समय है।” हालांकि, ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दोल्लाहियन ने चेतावनी दी है कि ऐसा कोई हमला “पूरे क्षेत्र में विनाशकारी युद्ध” को जन्म देगा।
इस बीच, इजराइल के शहर बैट याम में तीन बसों में विस्फोटों ने तनाव को और बढ़ा दिया है। इन हमलों के पीछे फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठनों का हाथ बताया जा रहा है। यह घटना इस बात का संकेत है कि मध्य पूर्व में हिंसा का चक्र थमने का नाम नहीं ले रहा।
अमेरिका ने ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को और सख्त किया है, जबकि रूस और चीन ने संघर्ष को शांत करने की अपील की है। यूरोपीय संघ ने दोनों पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया है। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच हाल की बैठकों से स्पष्ट है कि पश्चिम ईरान के परमाणुीकरण को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
ईरान और इजराइल दोनों ही अपनी सुरक्षा को लेकर अतिसंवेदनशील हैं। ईरान इजराइल को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है, तो इजराइल ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को अपनी सुरक्षा के लिए चुनौती। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए यह आवश्यक है कि वह दोनों पक्षों को बातचीत के माध्यम से तनाव कम करने के लिए प्रेरित करे। 2015 के परमाणु समझौते (JCPOA) को पुनर्जीवित करना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन इसमें अमेरिका और ईरान दोनों की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी स्पष्ट दिखाई देती है।
इस संकट में मानवीय पीड़ा सबसे बड़ी चिंता का विषय है। मध्य पूर्व के लोग दशकों से संघर्ष झेल रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि वैश्विक नेता संवाद के मार्ग को प्राथमिकता दें, ताकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त हो सके।