भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश बन गया है, जहां 2024 तक 3.8 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है। यह आंकड़ा 2014 के 2 मिलियन मीट्रिक टन से काफी अधिक है। ई-कचरे में छिपे मूल्यवान धातुओं और संसाधनों के कारण, यदि भारत इसका सही प्रबंधन करे, तो यह 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये) तक की आर्थिक संभावनाएं पैदा कर सकता है। यह न केवल आर्थिक लाभ देगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करेगा।
ई-कचरा क्या है?
ई-कचरा या इलेक्ट्रॉनिक कचरा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइल फोन, कंप्यूटर, टीवी, फ्रिज, एसी, वाशिंग मशीन आदि के खराब या पुराने हो जाने पर उत्पन्न होता है। इन उपकरणों में सोना, चांदी, तांबा, प्लेटिनम जैसे मूल्यवान धातु होते हैं, जिन्हें रिसाइकल करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।
भारत में ई-कचरे की स्थिति
भारत में ई-कचरे का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2024 तक 3.8 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है। इसका मुख्य कारण शहरीकरण और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का बढ़ता उपयोग है। घरों और छोटे व्यवसायों से 70% ई-कचरा उत्पन्न होता है, जबकि शेष 30% औद्योगिक और अन्य स्रोतों से आता है।
ई-कचरा प्रबंधन की चुनौतियां
- अनौपचारिक रिसाइकलिंग: भारत में केवल 16% ई-कचरा ही औपचारिक रूप से रिसाइकल होता है। बाकी 84% कचरा या तो अनौपचारिक रूप से निस्तारित होता है या घरों में ही पड़ा रहता है। अनौपचारिक रिसाइकलिंग में श्रमिकों की सुरक्षा और पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी की जाती है।
- कचरे का संग्रहण: लोग अक्सर पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को घर में ही रख लेते हैं, जिससे वे रिसाइकलिंग प्रक्रिया में नहीं आ पाते।
- प्रतिस्पर्धा: औपचारिक रिसाइकलिंग कंपनियों को अनौपचारिक क्षेत्र से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र में लागत कम होती है और नियमों का पालन नहीं किया जाता।
ई-कचरा प्रबंधन के लाभ
- आर्थिक लाभ: ई-कचरे से मूल्यवान धातुओं को निकालकर भारत अपने धातु आयात को कम कर सकता है। इससे देश को 6 बिलियन डॉलर तक का लाभ हो सकता है।
- रोजगार के अवसर: रिसाइकलिंग प्लांट्स और संबंधित उद्योगों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
- पर्यावरण सुरक्षा: ई-कचरे का सही प्रबंधन करने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
सरकारी पहल
- ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016: इस नियम के तहत उत्पादकों को अपने उत्पादों के रिसाइकल और निस्तारण की जिम्मेदारी दी गई है।
- एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR): इसके तहत कंपनियों को अपने उत्पादों के कचरे का निस्तारण करना अनिवार्य है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत ने बैसल कन्वेंशन और स्टॉकहोम कन्वेंशन जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो खतरनाक कचरे के प्रबंधन से संबंधित हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
विकसित देश जैसे यूरोपीय संघ और जापान ने ई-कचरा प्रबंधन में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। ये देश एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR) के माध्यम से ई-कचरे का प्रबंधन करते हैं और उत्पादकों को ही इसकी जिम्मेदारी सौंपते हैं।
भारत में ई-कचरा प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह एक बड़ा आर्थिक अवसर भी है। यदि सरकार और नागरिक मिलकर इस दिशा में काम करें, तो न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है, बल्कि आर्थिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है। ई-कचरे का सही प्रबंधन करके भारत अपनी आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं को हल कर सकता है।