Physical Address

304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124

Controversy over Premanand Maharaj's padyatra

Controversy over Premanand Maharaj’s padyatra: आध्यात्मिक यात्रा, विवाद और समाज के साथ सामंजस्य

प्रेमानंद महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिकता में थी। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और वाराणसी चले गए, जहां उन्होंने कठोर तपस्या और गंगा स्नान के साथ अपनी दिनचर्या बनाई। एक संत से मुलाकात के बाद उन्हें वृंदावन जाने की प्रेरणा मिली, जहां श्रीकृष्ण के दर्शन के बाद उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई। वृंदावन में उन्होंने आश्रम बनाया और हजारों भक्तों को दीक्षा दी।

रात्रिकालीन पदयात्रा और विवाद का कारण

प्रेमानंद महाराज की रात्रिकालीन पदयात्रा वृंदावन की एक प्रसिद्ध परंपरा बन गई थी। यह यात्रा रात 2 बजे शुरू होती थी, जिसमें भक्त लाउडस्पीकर पर भजन, आतिशबाजी और ढोल-नगाड़ों के साथ शामिल होते थे। हालांकि, एनआरआई ग्रीन सोसाइटी के निवासियों ने शोरगुल, रास्ते बंद होने और नींद में खलल की शिकायत की। विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए।

विवाद पर प्रतिक्रियाएं और समाधान

  1. स्थानीय निवासियों का पक्ष: शोर और असुविधा के कारण उन्होंने यात्रा का विरोध किया। सोसाइटी के अध्यक्ष आशु शर्मा ने यात्रा स्थगित करने की मांग की।
  2. भक्तों की प्रतिक्रिया: भक्तों ने सोशल मीडिया पर महाराज के समर्थन में अभियान चलाया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग करते हुए यात्रा पुनः शुरू करने की मांग की।
  3. बागेश्वर बाबा का समर्थन: धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने विरोध करने वालों को “राक्षस” बताते हुए कहा कि वृंदावन में रहने वालों को “राधे-राधे” कहना ही पड़ेगा।
  4. महाराज का निर्णय: स्वास्थ्य और भीड़ को देखते हुए प्रेमानंद महाराज ने यात्रा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी और रास्ता बदल दिया।

राजनीतिक और सामाजिक आयाम

  • शंकराचार्य से जुड़ा विवाद: एक वायरल वीडियो में महाराज को शंकराचार्य के प्रति आलोचनात्मक बताया गया, लेकिन जांच में पता चला कि उन्होंने शंकराचार्य की महिमा का गुणगान किया था।
  • महाकुंभ 2025: महाराज ने प्रयागराज जाने से इनकार करते हुए कहा कि उनकी निष्ठा अब केवल वृंदावन धाम के प्रति है।

संघर्ष और सीख

प्रेमानंद महाराज का जीवन संघर्षों से भरा रहा। एक बार उन्हें आश्रम से निकाल दिया गया, और पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के बावजूद उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग नहीं छोड़ा। उनका मानना है कि भक्ति और समाज के बीच संतुलन जरूरी है, इसलिए उन्होंने विवाद को बढ़ाए बिना यात्रा रोकने का निर्णय लिया।

प्रेमानंद महाराज की कहानी आध्यात्मिक दृढ़ता और सामाजिक सद्भाव की मिसाल है। विवाद ने समाज में धार्मिक आयोजनों और नागरिक सुविधाओं के बीच संतुलन की चर्चा छेड़ी है। महाराज का निर्णय इस बात का प्रतीक है कि आध्यात्मिक नेतृत्व में लचीलापन और समझदारी भी जरूरी होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *