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बॉलीवुड की पूर्व अभिनेत्री ममता कुलकर्णी एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह उनका फिल्मी करियर नहीं बल्कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा और किन्नर अखाड़े में शामिल होने को लेकर हो रहा विवाद है। हाल ही में प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में उन्होंने संन्यास लिया और उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई थी। हालांकि, अब खबर आ रही है कि किन्नर अखाड़े से उन्हें निष्कासित कर दिया गया है।
ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए जाने के बाद से ही संत समाज और अखाड़े के कुछ पदाधिकारियों के बीच मतभेद शुरू हो गए थे। किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास ने दावा किया कि ममता को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय अखाड़े की परंपराओं के खिलाफ था। वहीं, अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस फैसले का पुरजोर समर्थन किया और कहा कि इस निष्कासन का कोई वैधानिक आधार नहीं है।
इस पूरे विवाद में दो गुट बन चुके हैं—एक ओर ऋषि अजय दास हैं, जिन्होंने ममता कुलकर्णी को अखाड़े से निष्कासित करने का दावा किया है, और दूसरी ओर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, जो ममता के पक्ष में खड़ी हैं। लक्ष्मी नारायण का कहना है कि अजय दास का अखाड़े से कोई संबंध ही नहीं है और उन्हें पहले ही पदमुक्त किया जा चुका है, इसलिए उनके फैसले का कोई औचित्य नहीं है।
ममता कुलकर्णी का कहना है कि उन्होंने वर्षों पहले आध्यात्म का मार्ग अपना लिया था। उनका कहना है कि 1996 में उनकी मुलाकात गुरु गगन गिरि महाराज से हुई, जिसके बाद से ही उनका झुकाव सन्यास की ओर हुआ। उन्होंने बताया कि वह पिछले 23 वर्षों से ब्रह्मचर्य का पालन कर रही हैं और अब पूरी तरह से संन्यासिनी बन चुकी हैं। महाकुंभ के दौरान उन्होंने संगम में पिंडदान भी किया और उन्हें ‘श्री यमाई ममता नंद गिरि’ नाम दिया गया।
90 के दशक में ममता कुलकर्णी बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियों में शामिल थीं। उन्होंने ‘करण अर्जुन’, ‘बाजी’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’ और ‘चाइना गेट’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया। हालांकि, साल 2002 के बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया और अध्यात्म की राह पकड़ ली।
इस विवाद के बाद किन्नर अखाड़ा जल्द ही नए महामंडलेश्वर की नियुक्ति करने वाला है। वहीं, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही है। ममता कुलकर्णी ने खुद को इस विवाद से अलग रखते हुए कहा है कि उनका उद्देश्य सिर्फ आध्यात्मिकता को अपनाना है, न कि किसी विवाद में पड़ना।