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आज हम चर्चा करेंगे एक ऐसे विषय पर जो भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। विषय है अंतरिक्ष में युद्ध की संभावनाएं और इस पर हो रही तैयारियां।
आज की दुनिया में अधिकांश डिवाइस कम्युनिकेशन आधारित हैं। उदाहरण के लिए, हम इस समय भी एक कम्युनिकेशन चैनल के माध्यम से संवाद कर रहे हैं। यदि कम्युनिकेशन बाधित हो जाए, तो यह एक बड़े संकट का रूप ले सकता है। करोड़ों रुपये का नुकसान, हवाई दुर्घटनाओं की आशंका और व्यापार में रुकावटें जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
इस समय वैश्विक शक्ति अमेरिका और चीन के बीच तनाव अपने चरम पर है। ताइवान को लेकर चल रहे विवाद और अमेरिका के कड़े रुख ने चीन को सीधा चुनौती दी है। ऐसे में यदि कोई बड़ा युद्ध होता है, तो यह केवल धरती तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका और चीन दोनों ही अंतरिक्ष में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिका ने हाल ही में ऐसे उपकरण विकसित किए हैं जो सैटेलाइट सिग्नल्स को बाधित कर सकते हैं। इसे “रिमोट मॉड्यूलर टर्मिनल” (RMT) कहा जा रहा है।
सैटेलाइट्स तीन प्रकार की कक्षाओं में तैनात की जाती हैं:
लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) – यह धरती से 1,000 से 2,000 किमी की ऊंचाई पर होती है। इसमें लेटेंसी कम होती है, और कम्युनिकेशन तेज होता है।
मिडिल अर्थ ऑर्बिट (MEO) – यह मध्य कक्षा है, जो कुछ खास उपयोगों के लिए होती है।
हाई अर्थ ऑर्बिट (HEO) – यह जियोसिंक्रोनस कक्षा होती है, जो लगभग 36,000 किमी की ऊंचाई पर है। यहाँ से सैटेलाइट्स धरती के एक हिस्से पर लगातार नजर रख सकती हैं।
स्टारलिंक जैसे प्रोजेक्ट्स – एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने लो अर्थ ऑर्बिट में हजारों सैटेलाइट्स तैनात किए हैं, जो इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान कर रहे हैं। ये सैटेलाइट्स दूरस्थ क्षेत्रों में भी इंटरनेट उपलब्ध कराते हैं। हालांकि, इस तकनीक का दुरुपयोग भी संभव है, जिससे सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
कम्युनिकेशन बाधित करने के लिए दो प्रकार के जैमर्स विकसित किए जा रहे हैं:
अपलिंक जैमर्स – यह धरती से सैटेलाइट को जाने वाले सिग्नल्स को बाधित करते हैं।
डाउनलिंक जैमर्स – यह सैटेलाइट से धरती पर आने वाले सिग्नल्स को बाधित करते हैं।
ये जैमर्स रेडियो फ्रीक्वेंसी पर काम करते हैं और बड़े क्षेत्रों में कम्युनिकेशन को रोक सकते हैं। अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में इन जैमर्स को तैनात करने की योजना बनाई है।
चीन ने “यागन” सैटेलाइट सीरीज के तहत अपनी सर्विलांस क्षमताओं को मजबूत किया है। ये सैटेलाइट्स धरती पर हर छोटी गतिविधि पर नजर रख सकते हैं। चीन का अंतरिक्ष बजट भारत की तुलना में 15 गुना अधिक है। वह लगातार नई सैटेलाइट्स लॉन्च कर रहा है और अमेरिका की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है।
रूस ने भी सीक्रेट वेपन्स विकसित किए हैं, जो सैटेलाइट्स को नष्ट कर सकते हैं। एंटी-सैटेलाइट वेपन्स और अंतरिक्ष में न्यूक्लियर बॉम्ब के प्रयोग की योजनाओं पर भी चर्चा हो रही है।
भारत अंतरिक्ष में जासूसी और सुरक्षा के क्षेत्र में चीन और अमेरिका से काफी पीछे है। भारत का स्पेस बजट केवल 2 बिलियन डॉलर है, जबकि अमेरिका 73 बिलियन डॉलर और चीन 15 बिलियन डॉलर खर्च करता है। हालांकि, भारत ने 2024 में 52 स्पाई सैटेलाइट्स लॉन्च करने की योजना बनाई है।
मिशन शक्ति के तहत भारत ने पहले ही सैटेलाइट को नष्ट करने की अपनी क्षमता का परीक्षण किया है। यह भारत की अंतरिक्ष सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम था।
अंतरिक्ष में युद्ध का असर धरती पर कई तरह से महसूस किया जा सकता है। कम्युनिकेशन बाधित होने से जीवन के हर क्षेत्र पर असर पड़ेगा। आने वाले समय में अंतरिक्ष युद्ध केवल देशों की ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की लड़ाई बन सकता है।