आज दुनिया तेजी से तकनीकी क्रांति की ओर बढ़ रही है, और सेना भी इससे अछूती नहीं है। भारत समेत कई देश अब सीमाओं की सुरक्षा के लिए रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपना रहे हैं। यह कदम न केवल सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया जा रहा है, बल्कि सैनिकों की जान को खतरे में डाले बिना चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बेहतर निगरानी की संभावना भी पैदा करता है।
सीमाओं पर AI रोबोट्स की तैनाती का उद्देश्य
भारतीय सेना ने हाल ही में AI-संचालित रोबोटिक्स प्रणालियों का परीक्षण शुरू किया है। इनका मुख्य लक्ष्य दुर्गम और संवेदनशील इलाकों में घुसपैठ, आतंकवादी गतिविधियों, या अन्य सुरक्षा खतरों का पता लगाना है। ये रोबोट्स 24 घंटे काम करने की क्षमता रखते हैं, जो मानव सैनिकों के लिए संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, लद्दाख जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्र या असम के घने जंगलों में, जहाँ मौसम और भौगोलिक परिस्थितियाँ चरम पर होती हैं, वहाँ रोबोट्स निरंतर निगरानी कर सकते हैं।
कैसे काम करते हैं ये रोबोट्स?
इन रोबोट्स में मल्टी-सेंसर टेक्नोलॉजी, कैमरा सिस्टम, थर्मल इमेजिंग, और रडार जैसे उन्नत उपकरण लगे होते हैं। ये सेंसर वास्तविक समय में डेटा एकत्र करते हैं और AI एल्गोरिदम की मदद से उसका विश्लेषण करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति रात के अंधेरे में सीमा पार करने की कोशिश करता है, तो थर्मल इमेजिंग से उसकी गतिविधि का पता चल जाता है। इसके अलावा, ये रोबोट्स स्वायत्त (Autonomous) भी होते हैं, यानी वे बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अपने कार्य कर सकते हैं।
- 24×7 निगरानी: मनुष्य थकान, नींद, या शारीरिक सीमाओं से जूझते हैं, लेकिन रोबोट्स लगातार काम कर सकते हैं।
- जोखिम में कमी: खतरनाक इलाकों में रोबोट्स की तैनाती से सैनिकों की जान को खतरा नहीं होता। बम निरोधक ऑपरेशन या भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में ये विशेष रूप से उपयोगी हैं।
- सटीकता: AI की मदद से ये रोबोट्स डेटा को त्वरित और सटीक ढंग से प्रोसेस करते हैं, जिससे गलतियाँ कम होती हैं।
- मौसम की चुनौतियों का सामना: -40°C से 50°C तक के तापमान या भारी बारिश में भी ये काम कर सकते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अन्य देशों की रणनीति
भारत इस मामले में अकेला नहीं है। अमेरिका की DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) स्वायत्त ड्रोन और रोबोटिक वाहन विकसित कर रही है, जो सीमाओं पर गश्त कर सकते हैं। रूस ने Marker UGV नामक रोबोट बनाया है, जो युद्धक्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। चीन की Great Wall of Steel योजना में AI ड्रोन्स और रोबोटिक टैंक शामिल हैं, जो तिब्बत और जिनजियांग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात हैं। इजराइल का Guardian XT रोबोट सीमा पर सटीक निशानेबाजी करने में सक्षम है।
चुनौतियाँ और सावधानियाँ
हालाँकि यह तकनीक क्रांतिकारी है, लेकिन इसके कुछ जोखिम भी हैं:
- साइबर हमले: AI सिस्टम को हैक करके दुश्मन देश गोपनीय जानकारी चुरा सकते हैं या रोबोट्स को नियंत्रित कर सकते हैं।
- उच्च लागत: इन रोबोट्स के निर्माण और रखरखाव पर भारी खर्च आता है।
- सीमित निर्णय क्षमता: रोबोट्स मानवीय समझ और रचनात्मकता से वंचित होते हैं। आपातकालीन स्थितियों में वे त्वरित निर्णय नहीं ले पाते।
- रोजगार पर प्रभाव: भविष्य में रोबोट्स के कारण सैन्य नौकरियाँ कम हो सकती हैं, जिससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होगी।
भारत की तैयारी: IIT गुवाहाटी और स्टार्टअप्स का योगदान
इस दिशा में भारतीय संस्थान और कंपनियाँ भी सक्रिय हैं। IIT गुवाहाटी के सहयोग से The Spatio Robotic Laboratory ने ऐसे रोबोट्स विकसित किए हैं, जिन्हें DRDO (Defence Research and Development Organisation) ने मान्यता दी है। ये रोबोट्स न केवल सीमाओं पर, बल्कि आपदा प्रबंधन और अग्निशमन जैसे क्षेत्रों में भी उपयोगी हैं।
संतुलन की आवश्यकता
AI और रोबोटिक्स का उपयोग निस्संदेह सुरक्षा को नए आयाम देगा, लेकिन इसे मानवीय निर्णय और नैतिक मूल्यों के साथ संतुलित करना होगा। भारत जैसे देश के लिए, जहाँ सीमाओं की लंबाई और जटिलताएँ अधिक हैं, यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है। हालाँकि, साइबर सुरक्षा को मजबूत करने और सैन्य रणनीति में मानव-मशीन सहयोग को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। आने वाले वर्षों में, यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे यह तकनीक भारत की सुरक्षा चुनौतियों का समाधान बनती है।